
क्यों डूब रहे हैं बैंक?

फिलहाल यह नहीं मान सकते कि येस बैंक भी डूब गया है। भारतीय स्टेट बैंक ने उसकी 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव रिजर्व बैंक को भेजा है। स्वीकृति मिलते ही निवेश की प्रक्रिया शुरू होगी। उसमें 26 फीसदी शेयर तीन साल की अवधि के लिए स्थिर रखने होंगे, ताकि डूब रहे बैंक को सहारा मिलता रहे। येस बैंक सिर्फ 16 साल पुराना ही है और बीते 2-3 साल से लगातार रिजर्व बैंक की निगरानी में रहा है। रिजर्व बैंक के एक डिप्टी गवर्नर को भी बैंक के निदेशक मंडल में रखा गया था। उसके बावजूद येस बैंक का कर्ज बढ़ता ही गया, दिये गये कर्जों की वसूली न होने के कारण एनपीए 2.5 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा हो गया, बैंक के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक रहे राणा कपूर ने धीरे-धीरे अपने शेयर बेच डाले और बैंक से अलग हो गये। शायद उन्हें बैंक के डूबने के संकेत मिल चुके थे। कारगुजारियां ही उन्हीं की थीं !
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ऐन वक्त पर उन्हें दबोच लिया, उनके और तीनों बेटियों के आवासों तथा अन्य ठिकानों पर छापेमारी करके संवेदनशील और महत्वपूर्ण दस्तावेज अपने कब्जे में ले लिये। राणा कपूर और पत्नी बिंदू से लंबी जवाब तलबी करने के बाद मनी लॉन्डिंग के केस भी दर्ज किये गये हैं। दरअसल राणा कपूर ही मौजूदा बैंक संकट का ‘प्रथम खलनायक’ है और उसे गिरफ्तार भी कर लिया है। उसके नेतृत्व में बैंक ने अनिल अंबानी, दीवान हाउसिंग फाइनेंस लि., वरदराज सीमेंट, कैफे कॉफी डे, एस्सार पॉवर, सीजी पॉवर, एस्सेल ग्रुप और आईएल एंड एफएस आदि कंपनियों को मनमाने कर्ज दिये और वसूली की प्रक्रिया भी अपने मुताबिक तय की। नतीजा सामने है कि ऐसे कर्ज एनपीए होते गये और येस बैंक डूबने के कगार तक पहुंच गया। एनपीए राष्ट्रीय समस्या है। एक दौर में यह 9-10 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। शुक्र है कि सरकार के कड़े कदमों और कानूनों के कारण अब यह करीब 7.9 लाख करोड़ रुपए है। जिस देश का राष्ट्रीय बजट ही 30-32 लाख करोड़ रुपए का है, उसके लिये यह राशि भी देशहित में नहीं है। दरअसल, आम आदमी की छोटी-छोटी बचत ही जमा होकर अमीरों का एनपीए बनता जा रहा है। जिस तरह येस बैंक के संदर्भ में अचानक ही पाबंदी थोप दी गयी कि 3 अप्रैल तक कोई भी खाताधारक 50,000 रुपए से अधिक की निकासी नहीं कर पायेगा, बेशक खाते में कितनी भी राशि जमा हो, उसके मद्देनजर आम आदमी सवाल करने लगा है कि यदि बैंक में ही पैसा सुरक्षित नहीं है, तो फिर उसे कहां रखा जाये? बैंक कोई भी डूब रहा हो, लेकिन आम आदमी की आर्थिक गतिविधियां ठप्प हो जाती हैं। उसे वित्त मंत्री, रिजर्व बैंक के गवर्नर और भाजपा के प्रवक्ताओं के दिलासा देते आश्वासन नहीं चाहिये कि खाताधारकों का पैसा सुरक्षित है! किसी का वेतन येस बैंक में आता है, किसी के पेट्रोल पंप की क्रेडिट या डेबिट कार्ड के जरिये हुई कमाई येस बैंक में जाती हो, किसी को ईएमआई, बीमे की किस्त या कोई और भुगतान करना हो तो वह क्या करेगा? कोई भी कारोबार 50,000 से नहीं चलता! ऑन लाइन बैंकिंग बंद है, एटीएम खाली पड़े हैं, कोई और बैंक येस बैंक के एटीएम कार्ड को स्वीकार नहीं कर रहा है, चैक या एनईएफटी आदि से भी भुगतान या पैसे का लेन-देन संभव नहीं है, तो आम आदमी ऐसे बैंक में क्यों जाये? बल्कि ऐसे बैंक को रिजर्व बैंक ने अनुमति कैसे दी ? येस बैंक के करीब 28 लाख खाताधारक हैं। पुरी के भगवान जगन्नाथ मंदिर के 592 करोड़ रुपए भी फंसे हैं। बैंक की 1122 शाखाएं हैं और 18,000 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं। बेशक ऐसे बैंक को डूबने देना भी देशहित में नहीं है। सरकार और रिजर्व बैंक को यह बैंक भी चलाना पड़ेगा, लिहाजा पुनर्गठन का बोझ भी है। बुनियादी मुद्दा और संकट एनपीए का है। इतने बड़े स्तर पर उद्योगपति और कंपनियां डिफाल्टर क्यों हो रहे हैं? क्या उनकी परिसंपत्तियों और पूंजी के दावों का मूल्यांकन सही तौर पर नहीं किया जाता ? दरअसल इसे आपराधिक मानदंडों पर कड़ाई से कसा जायेगा, तब कोई अच्छे संकेत मिल सकते हैं। अलबत्ता आज येस बैंक है, कल पीएमसी सहकारी बैंक था और आने वाले कल में कोई और नाम भी सामने आ सकता है।