थिएटर्स की लाइट्स बंद होने पर फिल्मी बैकग्राउंड काम नहीं आता: अल्लू अर्जुन

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 मुंबई। तेलुगु सिनेमा के सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा – द राइज – पार्ट 1’ की हिंदी डबिंग को भी पसंद किया गया है। जल्द ही यह फिल्म हिंदी में बॉक्स ऑफिस पर 50 करोड़ रुपये की कमाई का आंकड़ा पार कर लेगी। भले ही अल्लू ने हिंदी सिनेमा में अब तक डेब्यू न किया हो, लेकिन वह पैन इंडिया कलाकार बन गए हैं। उनसे हुई बातचीत के अंश।

मेरे लिए यह एक नई सफलता है। जब हम कई भाषाओं में फिल्म को रिलीज करते हैं, तो हमारी कोशिश यही होती है कि कम से कम दो से तीन भाषाओं में फिल्म चले। लेकिन यह फिल्म पांचों भाषाओं में पसंद की गई। मैंने फिल्म का हिंदी वर्जन देखा है। श्रेयस को मैं शुक्रिया कहना चाहूंगा कि उन्होंने पुष्पा के किरदार के साथ न्याय किया है। पुष्पा के किरदार का एक अंदाज है, जिसे उन्होंने बखूबी समझा, क्योंकि वह खुद एक बहुत अच्छे कलाकार हैं।

हां, एक जो लाइन बनी थी दक्षिण भारतीय फिल्मों और हिंदी फिल्मों के बीच, वह पैन इंडिया फिल्मों से मिट रही है। अब हर कोई, हर भाषा के कलाकारों की फिल्में देख रहा है। डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से यह काफी हद तक संभव हो पाया है। मैं इसे दक्षिण भारत या उत्तर भारत में नहीं बांटना चाहूंगा। मुझे लगता है कि आज का कंटेंट ही बहुत वैश्विक हो गया है। कंटेंट ही किंग है। अगर वह सही से बन गया, तो हर जगह देखा जाएगा।

3. आप जब अपने किरदार चुनते हैं, तो कौन सी बातों का ख्याल रखते हैं?

मेरा मुख्य लक्ष्य यह है कि सिनेमाघरों में दर्शकों का मनोरंजन हो। मैं चाहता हूं कि मेरी फिल्मों को वैश्विक स्तर पर पसंद किया जाए। अगर मेरा किरदार निगेटिव भी होता है, तो उसे ऐसे तैयार किया जाना चाहिए, जो वैश्विक हो। पुष्पा फिल्म में भी मेरा किरदार निगेटिव ही था, जो एक मजदूर से स्मगलर बनता है। यह निगेटिव बैकड्रॉप है। लेकिन जिस तरह से इस फिल्म और किरदार को बनाया गया, वह काफी पाजिटिव था। मैं कमर्शियल सिनेमा का हिस्सा बनना चाहता हूं, जिसे लोग सिनेमाघरों में आकर देखें। मेरी कोई निजी या क्रिएटिव पाबंदियां नहीं हैं।

4. इस फिल्म का दूसरा पार्ट भी आएगा। इसे दो पार्ट में बनाने की जरुरत क्यों महसूस हुई?

हमें शुरू से ही पता था कि फिल्म इतनी बड़ी है कि इसे एक पार्ट में बनाना संभव नहीं है। हमने सोचा कि हम शूटिंग शुरू करते हैं, फिर देखा जाएगा क्या करना है। शूटिंग के दो महीनों में अहसास हो गया कि इसे दो पार्ट में ही बनाना होगा। अगले साल फरवरी-मार्च तक दूसरे पार्ट की शूटिंग शुरू होगी।

5. आपने हिंदी फिल्मों में अब तक अभिनय नहीं किया, उसकी क्या वजह रही?

सच कहूं, तो मुझे अब तक ऐसा कोई एक्साइटिंग ऑफर नहीं मिला है, जो मैं कर सकूं। अगर अच्छी स्क्रिप्ट मिलती है, तो मैं हिंदी फिल्मों में काम करने के लिए तैयार हूं। मैं पिछली सदी के आठवें दशक का बच्चा रहा हूं। जितनी हमने दक्षिण भारतीय फिल्में देखी हैं। उतनी ही प्रसिद्ध हिंदी फिल्में जैसे मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है देखते हुए बड़ा हुआ हूं। यह बड़ी हिट फिल्में हैं, जिनकी चर्चा दक्षिण भारत तक हुई है। औसत हिट फिल्में हम तक नहीं पहुंच पाती हैं।

6. आप फिल्मी परिवार से हैं। ऐसे में क्या नेपोटिज्म को लेकर बातें हुई थीं?

हां, बिल्कुल हुई थीं। जो सेल्फमेड एक्टर हैं, उनके लिए मेरे मन में बहुत इज्जत है। मैं खुद को सेल्फमेड एक्टर नहीं कह सकता हूं, क्योंकि मैं फिल्मी परिवार से हूं। फिल्मी बैकग्राउंड ने मुझे कितनी मदद की या कितना मैंने अपने दम पर कमाया है, उसे मापा नहीं जा सकता है। मैं इस बात के लिए शुक्रगुजार हूं कि मुझे मदद मिली, लेकिन वह मदद कितनी रही, क्या वह 10 प्रतिशत थी, 20 प्रतिशत या उससे ज्यादा उसे कोई माप नहीं सकता है। फिल्म बैकग्राउंड से होने के नाते कई लोगों का फायदा पहुंचता है, लेकिन लंबे समय तक इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए यह बैकग्राउंड काम नहीं आता। शुरुआत में फायदेमंद भले ही होता होगा, लेकिन लंबे समय तक यह अकेले खेले जाने वाला खेल है। आपको खुद को साबित करना होता है। जब थिएटर्स की लाइट्स बंद होती हैं और पिक्चर शुरू होती है, तो आपका फिल्मी बैकग्राउंड काम नहीं आता है। आपको दर्शकों का दिल अपने काम से जीतना पड़ता है।

7. फिल्म में आपका एक डायलॉग है कि मैं झुकेगा नहीं…। वास्तविक जीवन में आप कैसे हैं? अगर पुष्पा के किरदार जैसे हैं, तो क्या इस स्वभाव से फिल्म इंडस्ट्री में दिक्कत होती है?

क्या इसका मतलब यह होता है कि मैं पीछे नहीं हटूंगा ? तो हां, मैं जिद्दी इंसान हूं। मैं झुकेगा नहीं। मेरा यह स्वभाव इंडस्ट्री में चलता है। अगर यह एटीट्यूड आपमें नहीं होगा, तो आप आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

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