कारपोरेट लाबी का बजट -रघु ठाकुर

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        रघु ठाकुर

नई दिल्ली। भारत सरकार का वर्ष 2022-23 का वित्तीय बजट, वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीता रमन ने संसद में पेश किया। उन्होंने अपने बजट भाषण में कहा कि यह 25 वर्षों का आधार बजट है। उनका यह कथन अलोकतांत्रिक एवं चिंताजनक है, क्योंकि जो सरकार 5 वर्ष को चुनी गयी हो और लगभग तीन वर्ष पूरी कर चुकी हो वह आगामी 25 वर्षों का दृष्टि पत्र तो रख सकती है, परन्तु इसे बजट नहीं कह सकती। दृष्टि पत्र किसी संगठन या सरकार के कल्पना पर आधारित होता है, जबकि बजट ठोस सगुण घोषणा का होता है।

किसान आंदोलन के जो मुद्दे थे, जिन पर सरकार और किसानों के बीच सहमति बनी थी उनके बारे में भी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं है। यह कहना कि एम.एस.पी. पर रिकॉर्ड खरीदी की जायेगी यह अस्पष्ट घोषणा है। जिसमें निश्चियात्मक हां नहीं है। एम.एस.पी. की खरीद के लिये जो दो लाख सैंतीस हज़ार करोड़ रूपया रखा गया है, वह देश की किसानों की कुल पैदावार के एक छोटे से हिस्सा के लायक ही है। आयकर में छूट का दायरा नहीं बढ़ाया गया जबकि बाजार की महंगाई डेढ़ से दो गुना बढ़ गई है, स्वत: सरकार ने कर्मचारियों को मूल्य सूचकांक के आधार पर महंगाई भत्ता बढ़ाया है और इसी आधार पर सरकार को आयकर छूट की सीमा को बढ़ाना चाहिये था। कारपोरेट टैक्स में तीन प्रतिशत की कमी कर दी गयी, यानि अमीरों के लिये उनकी आय में सीधे-सीधे तीन प्रतिशत की वृद्धि हो गयी है। सारी दुनिया में यहां तक की अमेरिका में भी सरकार ने कारपोरेट टैक्स बढ़ाया है। ताकि विषमता कम हो और दूसरी तरफ भारत सरकार कारपोरेट टैक्स घटा रही है। कंपनियों को एन.पी.एस. की छूट का दायरा बढ़ा दिया गया है। इनकम टैक्स रिटर्न की भूल सुधार के नाम पर दो साल की अवधि दे दी गयी है। यानि आयकर दाताओं को खुलेआम काला पैसा बदलने और बचाने की अनुमति दे दी गई है। जहां एक तरफ इससे आयकर कानून के उल्लंघन के अपराधों के दण्ड से आर्थिक अपराधी बच जायेंगे, वहीं दूसरी तरफ एक लंबी अवधि में दस्तावेज़ी हेर फेर का एक मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।

श्री ठाकुर ने कहा कि ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावे की बात की गयी है, क्योंकि अब सरकार को सम्पन्न समाज के स्वास्थ्य की चिंता हो रही है। इससे किसान की आय पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा। आपातकाल क्रेडिट लाइन गारंटी योजना को 50 हज़ार करोड़ से बढ़ा कर 5 लाख करोड़ कर दिया है। यानि सरकार अपने कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाकर देश को भारी कर्जदार बनाने की तैयारी में हैं। यह आशंका इसलिये भी तार्किक लगती है, क्योंकि बजट के अनुसार भारत सरकार की कुल आय लगभग 23 लाख करोड़ रूपया है, जबकि सरकार के द्वारा घोषित खर्च 39 लाख 45 हज़ार करोड़ का बताया गया है। यानि लगभग 70 लाख करोड़ रूपया की उधारी सरकार को केवल खर्च पूरा करने को लेना होगी। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि, जी.डी.पी. का जो आंकड़ा सरकार ने बताया है, वह गलत है।  सरकार ने 400 नई वंदे भारत ट्रेन आगामी तीन वर्षों में चलाने की घोषणा की है, जबकि 2020 से 21 के बीच कोरोना के नाम पर कई हज़ार रेल गाडिय़ां बंद हो चुकी है। वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं, पत्रकारों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बीमार आदि को जो किराये में रियायत दी जाती थी वह भी समाप्त कर दी गयी है, तथा फिर चालू नहीं की गई, इतना ही नहीं अघोषित रूप से रेल भाड़ा बढ़ा दिया गया है।
कुल मिलाकर भारत सरकार का बजट कारपोरेट लॉबी का बजट है, जिसे कारपोरेट के साथियों ने तैयार किया है और कारपोरेट की सरकार लागू करेगी। बेरोजगारी के लिये इस बजट में कोई आशा नहीं है। तीन चार करोड़ पढ़े लिखे बेरोजगार और गैर पढ़े- लिखे बेरोजगार 20-22 करोड़ कुल बेरोजगारों को इस बजट में कोई उम्मीद नहीं है।

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