पौराणिक कहानी-एक्शन से बांधे रखती है ‘कांतारा’, यूं ही नहीं तारीफें बटोर रहे ऋषभ शेट्टी

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फिल्म: कांतारा
निर्देशक: ऋषभ शेट्टी
कलाकार: ऋषभ शेट्टी, किशोर, अच्युत कुमार, सप्तमी गौड़ा, प्रमोद शेट्टी और मानसी सुधीर
कांतारा: कन्नड़ फिल्म ‘कांतारा’ इन दिनों खूब तारीफें बटोर रही है। फिल्म 30 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। इसका निर्माण होम्बाले फिल्म्स ने किया है जिन्होंने केजीएफ बनाई थी। फिल्म का हिन्दी ट्रेलर आते ही इसके उत्तर भारत में रिलीज का इंतजार किया जा रहा था। 14 अक्टूबर को ‘कांतारा’ ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है। साउथ की फिल्म का क्रेज जिस तरह हाल के दिनों में बढ़ा है उसके बाद ‘कांतारा’ को लेकर काफी उम्मीदें हैं। ट्रेलर को मिले रिस्पॉन्स के बाद क्या फिल्म उन अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं।

पौराणिक कथाओं के साथ जोड़ती फिल्म

‘कांतारा’ को लेकर जिस तरह का हाइप क्रिएट हो गया है जो भी दर्शक थियेटर में जाएंगे उम्मीदें भी उतनी ही होंगी। फिल्म में एक्शन, रोमांच, विश्वास और पौराणिक कथाएं एक साथ दिखती हैं। यह हाल के समय में किसी भारतीय फिल्ममेकर द्वारा की गई बेहतरीन कोशिशों में से है। ऐसा अक्सर सुना जाता है कि भारतीय सिनेमा अपनी जड़ें भूलता जा रहा है क्योंकि इतनी विविधिताओं वाले देश में कहानियों का खजाना छुपा है। ‘कांतारा’ में एक अच्छा कहानीकार फिल्म निर्माण के ज्ञान और तकनीकी कौशल के साथ जमीन से जुड़ी कहानी को बताता है।

क्या है कहानी

‘कांतारा’ एक छोटे से गांव की कहानी है। फिल्म में कर्नाटक के तटीय इलाकों की संस्कृति और पौराणिक कथाओं को सहजता और सरता के साथ बुना गया है। फिल्म की कहानी दक्षिण कर्नाटक के एक गांव की है जहां एक राजा ने 150 साल पहले गांव वालों को जमीन दी थी। फिर आता है साल 1990, जहां फिल्म की कहानी सेट है। एक ईमानदार वन अधिकारी (किशोर) उस जमीन में पेड़ों की कटाई और शिकार को रोकने की कोशिश कर रहा है जो अब एक रिजर्व जंगल है। मामला तब मुश्किल भरा हो जाता है क्योंकि ग्रामीणों का मानना है कि जंगल उनके देवी देवताओं से वरदान के रूप में मिला है। जंगल के देवता रक्षक हैं इसलिए वह बाहरी व्यक्ति की बात सुनने के मूड में नहीं हैं। इसके खिलाफ गांव का ताकतवर शिव (ऋषभ शेट्टी) खड़ा होता है। उसे राजा के वंशज गांव के साहब (अच्युत कुमार) का समर्थन प्राप्त है।

जबरदस्त है सिनेमैटोग्राफी और निर्देशन

फिल्म में अरविंद कश्यप की खूबसूरत सिनेमैटोग्राफी है। उन्होंने जिस तरह से अपने लेंस से ‘कांतारा’ में लोककथाओं को जीवंत किया है उससे किसी भी स्टोरीटेलर को सीखना चाहिए। फिल्म में बैकग्राउंड स्कोर और म्यूजिक अजनीश लोकनाथ का है जो कैमरा वर्क से इतना तालमेल बैठता है कि वो तारीफ के काबिल हैं। शिव के रूप में ऋषभ के अभिनय की जितनी तारीफ की जाए कम है। उनके डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले स्क्रीन पर जादुई रंग बिखेरता है। करीब ढाई घंटे की फिल्म कभी भी कमजोर पड़ती नहीं दिखती। फिल्म में स्थानीय उत्सव और रीति-रिवाजों को रंगीन, ग्लैमरस तरीके से पर्दे पर उतारा गया है। क्लाइमेक्स, पूरी तरह से मसाला भारतीय फिल्म की पेशकश होने के साथ-साथ फिल्म को दूसरे स्तर पर ले जाती है।

बॉक्स ऑफिस कलेक्शन भी बता देते हैं। फिल्म 100 करोड़ की तरफ बढ़ रही। इस फिल्म की सफलता निर्धारित करेगी कि अन्य निर्माता मूल कहानियों को बताने की हिम्मत कर पाएंगे या नहीं।

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