जुनैद तैमूरी -मुलायम सिंह यादव को ‘शुन्य’ से ‘शिखर’ तक पहुंचाने में दिया योगदान

0
680
जुनेद तैमूरी ने पत्रकारिता को दिए हमेशा नए आयाम
नए पत्रकार किए पैदा साथ रखते थे खबरों का खजाना
तैमूरी की मां से आशीर्वाद लेकर अपना नामांकन कराने जाते थे पूर्व मुख्यमंत्री स्व मुलायम सिंह यादव 
 शेखर यादव 
इटावा। जनपद की माटी की उर्वरा शक्ति की यह विशेषता किसी से छिपी नहीं है कि यहां की माटी में प्रत्येक विद्या को इस प्रकार सिंचित किया है कि प्रत्येक  विद्या के महारथी को अपने-अपने क्षेत्र में फलक पर स्थापित करने का अवसर दिया है। चंबल की घाटी से सटे इस क्षेत्र ने ना सिर्फ बगावत के सुरों को देश-दुनिया में बुलंद किया  है यहां की महकती हुई खुशबु का ही परिणाम है कि यहां की प्रतिभाओं ने राजनीतिक खेल संघर्ष अथवा शिक्षा के क्षेत्र में भी फिजा को महकाया है कमोवेश पत्रकारिता का भी क्षेत्र  इससे अछूता नहीं है पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसा ही एक सितारा जुनैद तैमूरी के रूप में फलक पर ऐसा चमका कि कभी उनके साथ कदमताल करते रहे अन्य साथी पत्रकारों के मध्य ईष्या का कारण बन गए अपनी निष्पक्ष व पारदर्शी जीवंत लेखनी के माध्यम से उन्होंने ना सिर्फ अपनी एक अलग पहचान स्थापित की बल्कि वे एसे किरदारो के नायक के रूप में उभर कर सामने आए जिन्हें अपने अपने क्षेत्र की उपलब्धियों के प्रसार की आवश्यकता भी थी।
जनपदीय न्यायालय में कार्यरत प्रशासनिक अधिकारी  ,स्वउवैस बेग के  यहां  22 नवमबर  1962 में कुल 10 पुत्र पुत्रियों में चौथी संतान के रूप में जन्मे जुनैद तैमूरी को पत्रकारिता जैसा संघर्षशील जज्बा  किशोरवस्था से ही जाग गया था। महज 15 वर्ष की खेलने खाने की अवस्था में तैमूरी जनपद में पत्रकारिता के सिरमौर समझे जाने वाले साप्ताहिक  प्रलय के तत्कालीन संपादक स्वर्गीय प्रताप सिंह चौहान के शागिर्द बनकर समाज में व्याप्त कुरीतियों पर हमला बोलने वाले शब्द कोष से प्रहार करने लगे उनकी लेखनी और पत्रकारिता की चुनौतियों को आत्मसात कर उनसे मुकाबला करने की तैमूरी जी की हिम्मत को महसूस करते हुए  हिंदी पत्रकारिता के सशक्त माध्यम अमर उजाला समूह ने उन्हें जिला ब्यूरो चीफ  जैसी जिम्मेदारी सौंप दी।
यह वह दौर था जब पत्रकारिता का स्वरूप व्यवसायिक नहीं वरन समाज को आईना दिखाने वाला होता था सीमित संसाधन और चुनौतीपूर्ण कठिनाइयां इन के मध्य तालमेल बिठाना आसान नहीं था बावजूद इसके तैमूरी जी ने कभी हिम्मत नहीं हारी बल्कि प्रत्येक चुनौतीपूर्ण स्थिति का अपने स्तर से समाधान निकाला कभी चंबल की घाटी से तमाम नामचीन दस्यु गिरोह की आए दिन होने वाली बीभत्स अपराधिक वारदाते तो कभी राजनीतिक महत्वाकांक्षा वश राजनीतिक शक्तियों द्वारा आम जनों के मुद्दों को लेकर उठाए जाने वाले आंदोलनों प्रदर्शनों की बात हो इन सब के मध्य तारतम्य उठाने वाले आंदोलनों और प्रदर्शनों की बात हो सब के मध्य तारतम्य बैठा आसान नही था मगर यह तैमूरी जी का ही माददा था कि उन्होंने जनपदीय भौगोलिक स्थिति के अनुरूप न सिर्फ अपनी लेखनी मे निखार लाए  बल्कि  समय की रफतार के साथ   अपनी एक अलग छाप छोड़ी । बात यदि 80 से 90 के दशक की  जाए तो यह वह वक्त था जब जनपद की सीमा से सटे चम्बल क्षेत्र में आए दिन दस्यु दलों की गतिविधियां शासन प्रशासन के साथ ही आमजन को भी विचलित करती थी तो साथ ही   घटता बढ़ता राजनीतिक तापमान माहौल को संवेदनशील बना देता था।
यह वही दौर था जब आजादी के बाद से लगातार देश प्रदेश में सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के खिलाफ माहौल तेजी से बदल रहा था इन सबसे परे हट तैमूरी जी  पत्रकारिता को एक नई दिशा देने में जुटे थे साल1980 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर विधानसभा का चुनाव एक नई इबारत लिखने जा रहा था। यहां से एक ओर जहां समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव थे तो कांग्रेस से संजय गांधी के खास सिपहसालार बलराम सिंह यादव थे मुलायम सिंह को चुनावी शिकस्त देने के लिए संजय गाधी ने सारी शक्तियां झोंक दी चुनाव परिणाम भी अपेक्षा अनुकूल रहे जब कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव को उनके राजनीतिक जीवन का पहली एवं अंतिम शिकस्त देने में कामयाबी हासिल कर ली। इस राजनीतिक दृद के दरमियान भी तैमूरी जी ने अपनी लेखनी के प्रति तटस्थ रह कर अपनी छाप छोड़ी  ऐसा नहीं था कि दस्यु दलों की बीभत्स गतिविधियों एवं राजनीति की लहलहाती फसल  के मध्य तैमूरी जी अपने परिवारिक एवं सामाजिक सरोकारों से भी लगातार जुड़े रहे एक ओर जहां पत्रकारिता के क्षेत्र में नित्य नए आयाम स्थापित कर रहे थे इसी मध्य जनवरी 94 मे उनका निकाह सबा तैमूरी के साथ संपन्न हुआ एक ग्रहणी के रूप में सबा तैमूरी ने भी अपनी  परिवारिक दायित्वों के प्रति मननशील ने अलग छाप छोड़ी और अपनी संतानों को इस प्रकार के संस्कार दिए ताकि वह भी अपने भविष्य को संवार सकें।
इसी का परिणाम है कि उनका जेष्ठ पुत्र फैज तैमूरी विद्युत विभाग में अवर अभियंता तो कनिष्ठ पुत्र फैसल तैमूरी दुबई की एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर के पद की शोभा बढ़ा रहे हैं जबकि उनकी एकमात्र बेटी यशा तैमूरी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शोध की पढ़ाई में व्यस्त है। तैमूरी जी के जीवन में पत्रकारिता के पेशे ने समय-समय पर तमाम दुश्वारियां में सामने आए जिसमें वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हत्या कांड के बाद देशभर में भड़के सांप्रदायिक दंगे हों या फिर जनपद में घटित अस्ता कांड की भडकती ज्वाला हो  क्रांति रथ के रूप में कानपुर देहात से आरंभ होकर प्रदेश भर में निकला मुलायम सिंह यादव का सफर   रहा हो या फिर अयोध्या कांड को लेकर तैमूरी जी के खिलाफ  तत्कालीन उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश की भाजपा सरकारों ने मुकदमे दर्ज करवाए थे तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का लोकतंत्र के चौथे स्तंभ  पर बोला गया हल्ला बोल कार्यक्रम रहा हो ।
तैमूरी जी ने सूझबूझ के साथ काम करते हुए ना सिर्फ अपने समाचार पत्र अमर उजाला के साथ समझौता किया और ना ही मुलायम सिंह यादव के साथ अपने निजी संबंधों पर कुठारघात  होने दिया इन्हीं कारणों से तैमूरी जी को न सिर्फ मुलायम सिंह यादव बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल किसान नेता चौधरी अजीत सिंह कांग्रेस शासन के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी पूर्व केंद्रीय मंत्री बलराम सिंह यादव पूर्व राज्यपाल खुरशीद आलम पूर्व राजपाल उसमान आरिफ  बसपा संस्थापक कांशीराम पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद सहित देश व प्रदेश के तमाम नामचीन राजनीतिक व प्रशासनिक हस्तियों के करीब ला दिया मुलायम परिवार के साथ उनकी नजदीकियां  इस कदर थी कि मुलायम सिंह नमाकन के दौरान अपने साथ रखते थे बल्कि कबरेज के लिये उनका हेलीकॉप्टर भी सुलभ  रहता था।
साल 1990 से  पूर्व ही राज्य सरकार  द्वारा मान्यता दे दी गई थी जो आज भी अनवरत जारी है स्वास्थ अधिक भागदौड़ की अनुमति न देता हो परंतु पत्रकारिता के प्रति उनका समर्पण भाव ही है कि इस बेबसी मे भी वह अपने इस दिशा निर्देशों, अनुभवों के आधार पर दिल्ली से प्रकाशित दैनिक पंजाब केसरी मे बतौर ब्युरो चीफ अपनी  सेवाएं दे रहे हैं  पत्रकारिता के प्रति उनके समर्पण भाव से महामारी के रूप में उभरी कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के कारण जब देश लाकडाउन के माध्यम से करोना के साथ जंग लड़ रहा था और उनका खुद  का शरीर भी तमाम विसंगतियों से जुझ
 रहा था मगर इन सबके मध्य अपनी सपाट तथा जागरूकता फैलाने वाली लेखनी से  देश व समाज को लगातार दिशा देते रहे।
वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी खादिम अब्बास का कहना है कि वरिष्ठ पत्रकार जुनेद तैमूरी ने पत्रकारिता को दिए  नए आयाम और अपनी अलग पहचान बनाई उन्होंने मुलायम सिंह यादव को शुन्य से शिखर तक पहुंचाने बहुत बड़ा योगदान  दिया है यही कारण है जनपद के अलावा   तैमूरी ने  देश व प्रदेश के प्रमुख पत्रकारों में बनाई अपनी पहचान
उनका कहना है कि पत्रकारिता के भीष्म पितामह पंडित देवी दयाल दुबे जुनेद तैमूरी से इतना प्रसन्न थे कि उन्होंने तैमूरी को खबरों के खजाने की उपाधि तक से विभूषित कर दिया था स्व दुबे जी कहते थे पत्रकारिता की दुनिया में मेरा एक लंबा समय व्यतीत हुआ सैकड़ों पत्रकारों के बीच में रहा लेकिन तैमूरी जैसे जुनूनी और जोखम उठाने वाला हमें दूसरा व्यक्ति नहीं मिला जिसने अमर उजाला जैसे अखबार को नई जिंदगी प्रदान की और उसमें पंख लगा दिए स्व दुबे जी कहते थे विरले ही ऐसे लोग मिलते हैं जो सुघते ही खबर निकालने मैं माहिर होते हैं हम भी अनेक मामलों में तैमूरी का इस्तेमाल और सहयोग लिया करते थे यही उसकी उपयोगिता और लोकप्रियता कभी कभी शत्रु बन जाया करती थी।
खादिम अब्बास  बताते हैं कि तैमूरी जी ने मुलायम सिंह जी को अमर उजाला में प्राथमिकता के साथ छापा यह वह दौर था जब मुलायम सिंह अपने लोगों से पूछते थे कि बताओ हमारी कोई खबर किसी अखबार में छपी है तब उन्हें जवाब मिलता था जुनेद तैमूरी ने अपने समाचार पत्र अमर उजाला में आपकी खबर को प्राथमिकता से छापा है यही कारण रहा मुलायम सिंह जी के  तैमूरी परिवार से परिवारिक रिश्ते बन गए और यह रिश्ते ऐसे परवान चढ़े कि जब मुलायम सिंह जी किसी भी चुनाव के लिए अपना नामांकन करने जाते थे उससे पहले वह जुनैद तैमूरी की की मां से आशीर्वाद जरूर लिया करते थे यही कारण रहा कि जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तब अमर उजाला के मालिकों को हमेशा जुनैद तैमूरी के कदमों का सहारा लेना पड़ा श्री अब्बास का कहना है कि किसी न किसी रूप में जुनेद तैमूरी ने पत्रकारिता की सेवा की है वह भुलाई नहीं जा सकती यही कारण है कि जुनैद तैमूरी का नाम देश प्रदेश के प्रमुख पत्रकारों में जाना जाता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here