इंडिया एक्सप्रेस न्यूज़ एक्सक्लूसिव-संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी अगले कुछ दशकों में लुप्त हो सकती हैं 10 लाख प्रजातियां 

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छठवें मास एक्सटिंक्शन की चेतावनी, एक साथ विलुप्त हो जाएंगे 10 लाख वन्यजीव! 
भारत वन्यजीवों, जैव विविधता का अनूठा केंद्र, लेकिन जंगल, पहाड़, नदियों और वन्य जीवन संरक्षण के प्रयास नाकाफी 
   धनीष श्रीवास्तव
लखनऊ। वन्यजीवों का महत्व कई तरह से समझा जा सकता है, जैसे कि पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने, आर्थिक लाभ देने, वैज्ञानिक खोजों में मदद करने और जैव विविधता को बचाने के रूप में। भारत न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, बल्कि जैव विविधता का एक अनूठा केंद्र है। उत्तर में बर्फीले हिमालय से लेकर दक्षिण के सदाबहार वर्षा वनों तक, पश्चिम की तपती रेगिस्तानी रेत से लेकर पूर्व के नम और दलदली मैंग्रोव तक, भारत का हर कोना अनोखे पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण है। इन्हीं तंत्रों के बीच पलते हैं लाखों वन्यजीव, जो न सिर्फ प्रकृति की सुंदरता को जीवंत करते हैं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन में भी अहम भूमिका निभाते हैं। इसी जिम्मेदारी के साथ भारत पूरे विश्व में जैव विविधता के गहराते संकट की ओर हर साल पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करता है। क्योंकि चिंताजनक स्थिति वन्य जीवों के विलुप्त होने की है, जो सिर्फ भारत में नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर है।
वन्य जीवों की सामूहिक विलुप्ति का खतरा
आज पृथ्वी छठवें ‘मास एक्सटिंक्शन’ यानी सामूहिक विलुप्ति के मुहाने पर खड़ी है। पहले ही पृथ्वी 5 विलुप्ति देख चुकी है। वर्तमान स्थिति बरकरार रहती है तो मानवीय गतिविधियों के कारण छठा विलुप्तीकरण भी हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की यह भी चेतावनी रही है कि अगले कुछ दशकों में दस लाख प्रजातियां लुप्त हो सकती हैं। लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट की एक रिपोर्ट भी कहती है कि 1970 से 2016 तक पृथ्वी की वन्यजीव आबादी में निगरानी की गई कशेरुकी प्रजातियों में औसतन 68 प्रतिशत की गिरावट आई। यह आंकड़ा हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी प्रकृति को बचाने के लिए अब कदम उठाना कितना जरूरी है। वन्यजीव पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन्य जीवन प्रकृति की अलग-अलग प्राकृतिक प्रक्रियाओं को स्थिरता प्रदान करता है। जैव विविधता पर भी गहरा संकट मंडरा रहा है। जानकार बताते हैं कि ऐसे में अगर वन्य जीवन और जैव विविधता को बचाने के लिए युद्धस्तर पर‌ प्रयास नहीं किए गए तो बहुत से प्राणी जिन्हें आज हम देखते हैं, वो अगले कुछ दशकों में तस्वीरों तक सिमटकर रह जाएंगे।‌‌ जिसका सीधा असर प्रकृति चक्र पर पड़ेगा।  मौसम और समुंदर में असाधारण बदलाव होते रहेंगे। जिसका सीधा असर आम जनजीवन पर पड़ेगा।
कार्यक्रमों तक सिमटकर रह गया वन्य जीव सप्ताह 
कई देशों ने अपने प्राकृतिक वन्यजीवों के इर्द-गिर्द अपना पर्यटन क्षेत्र स्थापित किया है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि वन्यजीवों को बचाने के लिए समाज के बीच एक संदेश दिया जाए। इसी मकसद से वन्यजीव सप्ताह पूरे देश में हर वर्ष मनाया जाता है। वन्यजीव सप्ताह की शुरुआत 1952 में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाकर भारतीय वन्य जीवों के जीवन को बचाने के उद्देश्य से की गई थी। इसमें भारत की किसी भी प्रजाति को विलुप्त होने से बचाने की योजना बनाना शामिल है। भारत में पहली बार विलुप्त हो रहे वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 7 जुलाई, 1955 को ‘वन्य प्राणी दिवस’ मनाया गया था। बाद में  पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भारत में साल 1956 से लगातार वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। दूसरी तरफ लगातार वन्य क्षेत्रों में अतिक्रमण से जीवों का प्राकृतिक परिवेश सिमटता जा रहा है। प्रदूषण, प्लास्टिक, शिकार जैसी तमाम वजहों‌ से वन्य जीवन‌ और जैव विविधता में बढ़ोतरी के बजाए इसका संरक्षण ही चुनौती बन गया है।
दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों का संरक्षण जरूरी 
दक्षिण भारत में, पेरियार वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान और मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य जंगलों के आसपास और जंगलों में स्थित हैं। भारत कई राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों का घर है जो अपने वन्यजीवों की विविधता, अपने अद्वितीय जीवों और अपनी विविधता में उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
भारत भर में 89 राष्ट्रीय उद्यान, 13 जैव आरक्षित क्षेत्र और 400 से अधिक वन्यजीव अभयारण्य हैं, जो बंगाल टाइगर, एशियाई शेर, भारतीय हाथी, भारतीय गैंडे, पक्षी और अन्य वन्यजीवों को देखने के लिए सबसे अच्छे स्थान हैं, जो देश में प्रकृति और वन्यजीव संरक्षण को दिए जाने वाले महत्व को दर्शाते हैं। लेकिन इन अमूल्य वन्य जीवों को बचाने और उनकी संख्या में इजाफा करने के सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के प्रयास सिर्फ कागज और कार्यक्रमों तक ही सीमित नजर आते हैं, जिसकी बानगी वन्य जीवों की संख्या और जैव विविधता में लगातार आ रही गिरावट में साफ नजर आती है।

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