भोजनावकाश आधा घंटे से अधिक का नहीं होना चाहिए-मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

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ब्‍यूरो

लखनऊ । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोपहर में भोजनावकाश के बहाने काफी समय तक कार्यालय से गायब रहने वाले कार्मिकों को लेकर ही पिछले दिनों निर्देश दिया था कि भोजनावकाश आधा घंटे से अधिक का न हो। सभी विभागों में इस व्यवस्था का पालन कराया जाए। इसके बावजूद हालात अभी सुधरे नहीं हैं।इस पर असंतोष जताते हुए मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने सोमवार को जारी आदेश में कहा कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी आदेश के तहत सचिवालय में पांच दिवसीय कार्य सप्ताह लागू करते हुए काम का समय सुबह 9.30 से शाम छह बजे तक और मध्याह्न भोजन (लंच) के लिए दोपहर एक से डेढ़ बजे तक का समय निर्धारित है।

विभागाध्यक्ष कार्यालयों के लिए भी यही व्यवस्था है। मुख्य सचिव ने कहा है कि छह दिवसीय कार्य सप्ताह वाले कार्यालयों में निर्धारित समयावधि का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है। उन्होंने सभी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, मंडलायुक्त और जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि अपने अधीनस्थ कार्यालयों में निर्धारित समयावधि का कड़ाई से पालन कराएं। अधिकारियों व कर्मचारियों की कार्यालय में समय से और पूरी अवधि तक उपस्थिति सुनिश्चित कराएं। इसके लिए समय-समय पर कार्यालयों का औचक निरीक्षण करें। जो भी कार्मिक व्यवस्था का पालन करते हुए न पाया जाए, उसके खिलाफ कार्रवाई करें।

बता दें क‍ि मुख्यमंत्री योगी ने बीते मंगलवार को स्पष्ट कह दिया था कि भोजनावकाश आधा घंटे से अधिक का नहीं होना चाहिए। उन्‍होंने कहा था कि बेहतर कार्य संस्कृति के लिए सरकारी कार्यालयों में अनुशासन का माहौल बना रहना आवश्यक है। सभी अधिकारी और कर्मचारी समय से कार्यालय आएं। यह सुनिश्चित किया जाए कि भोजनावकाश आधा घंटे से अधिक न हो। भोजनावकाश पूरा होने के बाद सभी कार्मिक फिर से अपने कार्यस्थल पर समय से उपस्थित रहें।यह निर्देश सीएम को इसलिए देना पड़ा था, क्योंकि अधिकांश कार्यालयों में दोपहर में लंच के समय अधिकारी-कर्मचारी गायब हो जाते हैं, जो कि एक-दो घंटे बाद ही लौटते हैं। तब तक अलग-अलग काम से आने वाले आमजन और फरियादी वहां बैठे प्रतीक्षा करते रहते हैं। इस ढुलमुल रवैये से विभागीय कामकाज भी प्रभावित होता है। शासन में प्रमुख पदों पर बैठे अधिकांश आइएएस अधिकारियों का भी यही हाल है।

इस व्यवस्था में सुधार के निर्देश के साथ ही योगी ने कहा है कि शुचिता और पारदर्शिता के लिए यह सुनिश्चित कराया जाए कि लोक निर्माण, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा आदि विभागों में विभिन्न परियोजनाओं के लिए डीपीआर बनाने वाली संस्था संबंधित परियोजना की टेंडर प्रक्रिया में भाग नहीं ले। इसके लिए स्पष्ट व्यवस्था लागू कर दी जाए।

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