भारत ने जिस बांग्लादेश को दिलाई आजादी, वही अब बन बैठा दुश्‍मन

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भारत ने की थी मदद

ढाका: भारत और बांग्लादेश के संबंधों में आज के समय तनाव देखा जा रहा है। लेकिन एक साल पहले बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत-बांग्लादेश संबंधों को ‘स्वर्णिम काल’ में बताया था। पिछले दशक में दोनों देशों ने आतंकियों का मुकाबला करके, एक सीमा विवाद को हल करके और विभिन्न बुनियादी ढांचे और बिजली सौदों पर हस्ताक्षर करके अपने संबंध मजबूत किए थे। लेकिन अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार गिरने के बाद दोनों देशों के संबंधों में खटास बढ़ गई।

बांग्लादेश में कई लोग भारत पर शेख हसीना का समर्थन करने का आरोप लगाते हैं। इस बीच भारत में कई लोगों का मानना है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों को नजरअंदाज कर रही है और भारत विरोधी गुटों के साथ मिल रही है। इस आपसी अविश्वास ने लंबे समय तक मजबूत साझेदारी को खतरे में डाल दिया है। यह पहली बार नहीं है जब भारत-बांग्लादेश संबंधों को इस तरह की उथल-पुथल का सामना करना पड़ा है। 1971 में बांग्लादेश को आजादी मिलने के बाद शुरुआती दिनों में ही दोनों देशों में खटास देखी गई।

भारत ने साल 1971 में बांग्लादेश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, पाकिस्तान के खिलाफ बंगाली विद्रोह का समर्थन किया और एक नया देश बनाने में मदद की। भारत और बांग्लादेश ने 1972 में मित्रता और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किया। बांग्लादेश के नेता ने शेख मुजीबुर रहमान ने भारत को अपनी विदेश नीति की आधारशिला घोषित किया। लेकिन कुछ ही वर्षों में संबंध खराब होने लगे।

बांग्लादेश को युद्ध के बाद महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसमें ध्वस्त अर्थव्यवस्था और बड़े पैमाने पर गरीबी शामिल थी। कई आम बांग्लादेशी इसके लिए भारत को दोष देने लगे। भारत पर आर्थिक शोषण और साझा जल संसाधनों पर एकाधिकार का आरोप लगे थे।

शेख मुजीबुर रहमान ने भारत से अपनी शुरुआती नजदीकी के बावजूद दूरी बना ली। उन्होंने भारत समर्थक नेताओं को दरकिनार कर दिया और भारत विरोधी बयानों का इस्तेमाल घरेलू मुद्दों पर ध्यान भटकाने के लिए किया। 1970 के दशक के मध्य तक बांग्लादेश में भारत का प्रभाव काफी कम हो गया। इसके बावजूद भारत ने मुजीब का समर्थन जारी रखा। एक ही नेता पर निर्भरता विनाशकारी साबित हुई।1975 में शेख मुजीब की हत्या हो गई। उनके बाद की सरकारों ने ऐसी नीति अपनाई जो भारत के हितों से मेल नहीं खाती थीं। इस कारण पाकिस्तान और चीन को बांग्लादेश से संबंध बढ़ाने का मौका मिला।

भारत और बांग्लादेश में अविश्वास का चक्र लंबे समय तक जारी रहा। शेख हसीना की सत्ता में वापसी ने भारत-बांग्लादेश संबंधों में मधुरता देखी, क्योंकि उन्होंने भारत समर्थक नीतियां अपनाईं। हालांकि, उनका शासन निरंकुश रहा, जिस कारण भारत का समर्थन कई बांग्लादेशियों को पसंद नहीं आया। शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद अब भारत के पास अपने दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत को अल्पकालिक लाभ पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण और बांग्लादेशी आबादी के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने में निवेश करना चाहिए।

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