लता मंगेशकर: सागर में जा मिलीं सुरों की स्वरगंगा, काश, इस बार भी झूठी साबित होती डॉक्टरों की वाणी

0
530
लखनऊ ।मंच पर हिंदी सिनेमा के तकरीबन सारे दिग्गज मौजूद। माइक यश चोपड़ा के हाथ में और सामने लता मंगेशकर। यश चोपड़ा बोले, ‘हम खुशनसीब हैं कि ऐसे युग में जी रहे है जिस युग में लता मंगेशकर गाने गा रही हैं। 60 साल की उम्र में उनकी आवाज में 16 साल की किशोरी जैसी खनक है।’ यह मौका था यश चोपड़ा की फिल्म ‘चांदनी’ की कामयाबी के जश्न का। इस समारोह में दिलीप कुमार से ट्रॉफी लेने से पहले लता मंगेशकर ने मंच पर ही उनके पैर भी छुए। और, यही वो लम्हा था जिसने संगीत के एक साधक को साधना का प्रतिमूर्ति बना दिया। करियर के शुरुआती दौर में इन्हीं दिलीप कुमार ने एक दिन लोकल ट्रेन में सफर करते समय साथ बैठे संगीतकार अनिल बिस्वास से उनकी बगल में बैठी लड़की का नाम पूछा और कटाक्ष किया कि क्या इसे उर्दू के लफ्ज़ों का उच्चारण भी ठीक से आता होगा। बात लता के दिल को लग गई और न सिर्फ उन्होंने एक मास्टर रखकर उर्दू सीखी बल्कि अपने हर गाने को गाने से पहले वह गीतकार से उसे पढ़कर कहने को सुनातीं और हर शब्द के उच्चारण को कंठस्थ कर लेतीं। एस डी बर्मन तो यहां तक कहते, ‘मुझे एक हारमोनियम और लता ला दो, मैं संगीत रच दूंगा।’ लेकिन, अब कोई संगीतकार ऐसा कभी नहीं कह पाएगा। सुरों की सरिता बहाने वाली स्वरगंगा लता मंगेशकर रविवार की सुबह सागर से जा मिलीं।
राजकपूर के लिए ना गाने का एलान
बशीर बद्र का एक शेर, ‘मुखालिफत से मिरी शख्सियत संवरती है, मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूं’ और लता मंगेशकर ने भी फाकाकशी करके भले दिन गुजारे हों लेकिन कभी दिग्गजों के आगे घुटने नहीं टेके। दिलीप कुमार से बरसों तक बात न करने के बाद जब उनकी एक बार दाद मिली तो उन्हें अपना बड़ा भाई भी वह मानने लगीं। उनका और तब के शो मैन राजकपूर का भी पंगा खूब चला। फिल्म ‘बॉबी’ में संगीतकारों के तौर पर शंकर जयकिशन के नाम का एलान होने के बावजूद राज कपूर बाद में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को ले आए। इसके पहले बनी राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के गानों की रिकॉर्डिंग के समय ही राज कपूर और लता मंगेशकर से संबंध बिगड़ गए थे। कोई कहता है कि ये झगड़ा रॉयल्टी को लेकर हुआ तो कोई बताता है कि इसके पीछे फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का कोई गीत था। तब लता मंगेशकर ने एलानिया तौर पर कह दिया था कि अब वह राज कपूर की फिल्मों के लिए गाने नहीं गाएंगी। ये लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के ही बस का था जो लता मंगेशकर फिल्म ‘बॉबी’ के गीत गाने को तैयार हो सकीं।

गुलाम हैदर को दिया पिता सा सम्मान

देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित रहीं लता मंगेशकर ने 12-13 साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया। ये वही वक्त था जब उनके पिता गुजर गए। गुजरने से पहले ही अपनी बड़ी बेटी हेमा का नाम दीनानाथ अपने एक नाटक के किरदार के नाम पर बदलकर लता कर गए। लता ने लता बनकर ही अपनी बहनों और भाई को संभाला। मास्टर विनायक से काफी मदद मिली और बाद में गुलाम हैदर ने उनके सुरों को काफी तराशा। एक बार गुरुपूर्णिमा पर बात चलने पर लता मंगेशकर ने कहा, ‘गुलाम हैदर मेरे पिता समान हैं। उन्होंने ही मुझे हिंदी सिनेमा में वह पहचान दिलाई, जिसके बूते मैं आगे संघर्ष कर यहां तक आ सकी।’

लता मंगेशकरनाम ही विशेषण है

लोग उन्हें सरस्वती का अवतार मानते। सरस्वती पूजा के अगले दिन सरस्वती की प्रतिमाएं विसर्जन को चलीं तो इसमें एक देह लता मंगेशकर की भी रही। वसंत पंचमी के अगले दिन वह महाप्रयाण कर गईं। इह लोक में सर्वश्रेष्ठ सुर साधने वाली लता मंगेशकर अब गोलोक में गायन करेंगी। जावेद अख्तर कहते हैं, ‘लता मंगेशकर एक नाम भी है। संज्ञा भी है। उपमा भी है और विशेषण भी है। उनका किसी दूसरे नाम से नहीं पुकारा जा सकता।’ फिर भी लोग उन्हें स्वर कोकिला कहकर बुलाते रहे। रॉयल अलबर्ट हॉल में अपनी पेशकश देने वाली वह पहली भारतीय गायक बनीं और वह भी अब से कोई 48 साल पहले। गोवा के मूल निवासी मराठी परिवार में मराठी पिता और गुजराती माता की ये संतान इंदौर की धरती पर जन्मी। कभी जिक्र आया भी कि क्या उन्हें सरस्वती का आशीर्वाद सबसे ज्यादा मिला? तो वह बोलीं, ‘मुझे नहीं लगता कि जितना मैं कर पाई हूं या जितना सम्मान आप लोग मुझे देते हैं, मैं उसके लायक भी हूं। ये सब मेरे माता पिता, ईश्वर और साईंबाबा के आशीर्वाद से संभव हुआ। मैं गाती हूं, लोग उसे पसंद करते हैं। बस मेरी सफलता इतनी सी ही है।’

‘आएगा आने वाला’ ने बदल दी किस्मत

लता मंगेशकर को इस बात का हमेशा मलाल रहा कि उनके पिता उनकी कामयाबी नहीं देख पाए। 1942 में ‘किति हसाल’ के लिए पहला गाना गाया तो पिता जा चुके थे। मुंबई आने पर भी फिल्मों में इक्का दुक्का गाने मिलता रहे। लेकिन साल 1949 में मधुबाला पर फिल्माए गए फिल्म ‘महल’ के गाने ‘आएगा आने वाला’ ने उनका करियर पटरी पर ला दिया। अनिल बिस्वास, शंकर जय किशान, नौशाद, एस डी बर्मन, सी रामचंद्र, हेमंत कुमार, सलिल चौधरी, खय्याम, रवि, सज्जाद हुसैन, रोशन, कल्याण जी आनंद जी, मदन मोहन, उषा खन्ना, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से लेकर विशाल भारद्वाज तक के संगीतकारों के साथ गाते हुए लता मंगेशकर ने सात पीढ़ियों की अभिनेत्रियों के लिए गाने गाए हैं।

सात पीढ़ियों की अभिनेत्रियों के लिए गायन

लता मंगेशकर के पार्श्वगायन का सफर 40 के दशक में मधुबाला और निम्मी, 50 के दशक में मीना कुमारी, नरगिस और नूतन, 60 के दशक में वहीदा रहमान, आशा पारेख और शर्मिला टैगोर, 70 के दशक में जया भादुड़ी, जीनत अमान, 80 के दशक में श्रीदेवी और रेखा, 90 के दशक में जूही चावला, रति अग्निहोत्री, करिश्मा कपूर और मनीषा कोइराला से लेकर नई सदी में प्रीति जिंटा और करीना कपूर तक जारी रहा। फिल्म ‘वो कौन थी’ के गाने  ‘लग जा गले के फिर ये मुलाकात हो ना हो’ के लिए संगीतकार मदन मोहन ने हफ्तों इंतजार किया। तब लता मंगेशकर बेहद ज्यादा बीमार पड़ीं और डॉक्टरों ने कह दिया कि शायद वह दोबारा गा भी न सकें। लेकिन डाक्टरों की भविष्यवाणी को गलत झुठलाने वाले लता इस बार डॉक्टरों की 28 दिन चली मेहनत का साथ न दे सकीं। लेकिन उनका ना तो नाम गुमेगा और ना ही उनकी दैवीय अनुकृति सा चेहरा लोगों को कभी भूलेगा। और, आवाज तो खैर उनकी पहचान रहेगी, यादों में हमेशा हमेशा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here