276 गोसाईंगंज विधान सभा-समाजवादी पार्टी प्रत्याशी अभय सिंह
अक्षत श्री.
अयोध्या। अयोध्या के पांच विधान सभा और एक लोक सभा सीट पर भले ही पांच साल तक भाजपा का परचम लहराया हो लेकिन इस बार विधायक की कुर्सी तक पहुंचने की राह आसान नहीं है। जनता-जनार्दन मतदान केन्द्रों पर अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल करने को बेताब हैं। द संडे व्यूज़ की टीम 276 गोसाईंगंज विधान सभा से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अभय सिंह से बात करने पहुंची। अभय सिंह ने पूरी बेबाकी से अपनी बात रखी। ये वही अभय सिंह हैं जिन्होंने वर्ष 2012 में गोसाईगंज में सपा से चुनाव लड़ा और विधायक बने। वर्ष 2017 में भाजपा प्रत्याशी इन्द्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी से मामूली अंतर से हार गये। इस बार फिर से अभय सिंह और खब्बू तिवारी आमने-सामने हैं। हालांकि खब्बू तिवारी ‘फर्जी मार्कशीट’ लगाने के आरोप में जेल की सलाखों में हैं और उनकी पत्नी चुनावी मैदान में हैं। पेश है सपा प्रत्याशी अभय सिंह से द संडे व्यूज़ के संवाददाता अक्षत श्री. की खास बातचीत…
सवाल: बचपन से ही आप पढऩे में तेज थे,आप आईएस या आईपीएस बनना चाहते थे। फिर आप राजनीति में कैसे आ गये ?
जवाब: देखिये,हिन्दुतान में यदि आप गरीब,दुखियों की मदद करना चाहते हैं तो सत्ता में आ जाये या फिर बड़ा अधिकारी बन जाये…। यही सोचकर मैं राजनीति में आ गया।
सवाल: लखनऊ विश्वविद्यालय में जब आप गोल्डन जुबली हॉस्टल में थे,उस दौरान आपके सीनियर ने पी. वी. नरसिम्हा राव के किताब की एक लाईन बतायी थी, ‘भारत जैसे विकासशील देश में राजनीतिक सत्ता ही एक ऐसा माध्यम है जिसमें आकर आप किसी की मदद कर सकते हैं’। तो क्या यही टर्निंग प्वाइंट था ?
जवाब: नहीं,उस दरम्यान कुछ ऐसे हालात पैदा हो गये थे कि मुझे राजनीति में आना पड़ा।
सवाल: छात्रसंघ के चुनाव से ही आपका कैरियन उठान पर आया। देखा जाये तो वर्ष 2012 से छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगी है। 2019 में मामला उठा है लेकिन यूपी के सभी विश्वविद्यालयों में सही ढंग से चुनाव नहीं हो पाया है। यूं कहा जाये कि सरकार छात्रसंघ चुनाव नहीं होने नहीं देना चाहती है। क्या छात्रसंघ चुनाव में एबीबीपी स्ट्रांग नहीं है इसलिये सरकार चुनाव नहीं होने देना चाहती ?
जवाब: भाजपा कभी नहीं चाहती कि छात्रसंघ का चुनाव हो। भाजपा ने कभी भी छात्रनेताओं को ‘तवज्जो’ नहीं दिया। वे जानती है कि गरीबों,किसानों,मजदूरों पर कोई समस्या होगी तो छात्रनेता हल्ला बोल जारी कर देते हैं। छात्र पढ़े-लिखे होते हैं और भाजपा का एजेंड़ा इन पर नहीं चल पाता है। भाजपा का एजेंड़ा ‘अनपढ़’ और ‘गंवारों’ पर चलता है जो इने षडय़ंत्रों को नहीं समझ पाता है।
सवाल: यानि, आप ये कह सकते हैं कि भाजपा एक तरह से ‘भारत के भविष्य’ को कमजोर कर रही है ? क्योंकि जब चुनाव नहीं होगा तो छात्रनेता कैसे निकलेंगे ?
जवाब: भाजपा भारत के नौजवान छात्रों के भविष्य को कमजोर कर रही है। छात्र राजनीति ने ही देश को प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री और अनगिनत माननीय दिये हैं।
सवाल: विपक्ष को प्रतिपक्ष का ‘आईना’ माना जाता है। हमने देखा है इस समय एक ट्रेंड चल रहा है ‘पॉवर पॅालिटिक्स’ का। अपनी ताकत का इस्तेमाल कर विपक्ष को तोडऩे का। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है?
जवाब: हां हुआ है। इसका दुरुपयोग तो हो ही रहा है। पंचायत चुनाव तक कितनी गुंडागर्दी थी। चीरहरण एक बार महाभारत में हुआ था और दूसरी बार भााजपा सरकार में लखीमपुरखीरी में। वहां पर एक महिला की साड़ी उतार दी गयी थी। ऐसा लगा मानों चीरहरण हो रहा हो।
सवाल: एक सवाल जो आपको पसंद नहीं आता। आपको ‘बाहुबली’ कहा जाता है ? क्या जनता भी यही मानती है ?
जवाब: देखिये ये तो आपकी अपनी विचारधारा है। आप चाहें ‘बाहुबली’ बोले,‘महाबली’ बोले…लेकिन मैं तो अपने को जनता का ‘सेवक’ मानता हूं। मैं सत्ता सिर्फ इसलिये चाहता हूं क्योंकि मुझे मालूम है कि इसी में रहकर मैं गरीब,मजलूमों की मदद कर सकता हूं।
सवाल: बाहुबली का सकारात्मक अर्थ निकाला जाये तो उसे कहते हैं जिसकी भुजाओं में ताकत हो और जो बेसहारों का सहाना बने,फिर आपको बुरा नहीं लगना चाहिये,क्योंकि आपभी तो यही काम कर रहे हैं?
जवाब: शाब्दिक और सामाजिक अर्थ अलग-अलग होता है। लोग तय करते हैं कि वे बाहुबली शब्द का अर्थ निकाले या अनर्थ।
सवाल: विधायक निधि और सांसद निधि के फंड का सही ढंग से उपयोग कैसे होना चाहिये और इस निधि में होने वाले घोटालों पर कैसे रोक लग सकती है?
जवाब: इस पर सरकार रोक लगा सकती है। सरकार ने स्क्रीनिंग कमेटी बना रखी है तो उसे ही पैमाना तय कर देखना होगा कि इस निधि में घोटाला हो रहा है तो उसे कैसे रोके। हमलोग कुछ नहीं कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि सिस्टम को खराब तो अधिकारी करते हैं। ये यदि 100 रुपये कमाते हैं तो उसे अपने परिवार पर खर्च करते हैं और यदि नेता 100 रुपये कमाता है तो 95 रुपये जाकर क्षेत्र की जनता पर खर्च करता है।
सवाल: मतलब नेता ईमानदार और अधिकारी बेईमान हैं ?
जवाब: जी हां,100 परसेंट।
सवाल:चुनाव में आप अपना फाईटर किसे मानते हैं?
जवाब: 80 परसेंट हम हैं हमारा है,20 में बंटवारा है।
सवाल: सपा सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नारा था कि ‘काम बोलता है’…. भाजपा का नारा है ‘सोच ईमानदार,काम दमदार’…। दोनों नारों में आपको भारी कौन दिख रहा है ?
जवाब: देखिये,‘काम तो बोलता है । भाजपा में नारा,स्लोगन लिखने वाले नेताओं की लम्बी फौज है। काम करने वाले तो अखिलेश यादव के पास है । हमारी सरकार जब गांव में रहने वाले किसान और गरीब के इंटर पास बच्चों को बिना भेदभाव किये लैपटॉप बांटती थी तब यही भाजपा के लोग कहते थे कि झुनझुना बांट रहे हैं। जबकि राष्टï्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की सोच थी कि जब विदेश में रहने वाले किसानों के बच्चे जब लैपटॉप और कम्प्यूटर चला रहे हैं तो हमारे यूपी के बच्चे क्यों नहीं लैपटॉप चलायें। दो साल से कोरोना काल चल रहा है। बच्चे सभी काम ऑनलाइन कर रहे हैं तो भाजपा सरकार गांव में रहने वाले गरीब किसान के बच्चों को पांच हजार रुपये का स्मार्ट फोन नहीं दे सकते? ये नहीं चाहते कि गांव में रहने वाले किसान और गरीब के बच्चों की स्थिति सुधरे। जब बच्चे शिक्षा नहीं पायेंगे तो रोजगार कैसे मांगेंगे।
सवाल: गोसाईंगंज विधान सभा में कभी लंबे समय तक वसूली की परंपरा चलती रही। आप जब पहली बार विधायक बनें तो उसे पूरी तरह से बंद करा दिया। सुनने में आ रहा है कि फिर से वसूली शुरु हो गयी है?
जवाब: हां मैंने पूरी विधानसभा में वसूली बंद करा दी। चारो तरफ इस नेक काम की चर्चा होने लगी। यह संदेश राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंची और उसी के बाद पूरे प्रदेश में तहबजारी बंद करा दी गयी।
सवाल: सुना है कि भाजपा प्रत्याशी खब्बू तिवारी ‘इमोशन गेम’ खेलकर चुनाव जीतते हैं। खब्बू तिवारी ‘कभी जान का खतरा’ बताकर तो कभी भईया ‘चुनाव जीता दो तो मेरी शादी हो जायेगी’…ऐसा कहकर चुनाव जीतते रहेेें। वे फर्जी मार्कशीट प्रकरण में जेल में हैं और चुनाव उनकी पत्नी लड़ रही हैं। क्या इस बार भी इनका ‘इमोशन ड्रामा’ काम आयेगा ? भाजपा प्रत्याशी चुनाव अपने लिये लड़ते हैं या जनता के लिये?
जवाब: खब्बू तिवारी बेहद चालाक और षडय़ंत्रकारी इंसान है। पढ़े-लिखे लोग उन्हें पूरी तरह से समझ चुके हैं। खब्बू तिवारी को मालूम है कि कैसे लोगों को ठगना है,कैसे बेवकूफ बनाना है…। वर्ष 2000 में जब वे जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहे थे तो मतदाताओं से कहा कि ‘मुझे चुनाव जीता दीजिये नहीं तो पुलिस वाले मेरी हत्या करा देंगे’। पुलिस से प्राणों की रक्षा बोलकर चुनाव लड़े और गांव वालों को भरमा कर चुनाव जीत गये। जीतने के बाद कभी गांव में झांकने नहीं आये। उसके बाद विधायकी का चुनाव लड़ते रहें और हारते रहें। 2017 में कहा कि ‘मेरी शादी करा दो’…। चुनाव जीत गये। अब इस बार उनकी पत्नी रोती हैं,कहती हैं कि मेरे पति जेल में हैं,जीता दिजीये तो जेल से बाहर आ जायेंगे क्योंकि जेल में उनके साथ बहुुत अत्याचार हो रहा है…। इस तरह से खब्बू तिवारी की पत्नी और कार्यकर्ता नाटक कर रहे हैं मानों उनके पति देश के धरोहर हैं, देशहित में,किसानों,मजलूमों की लड़ाई में जेल गये हों। अरे उन्होंने तो फ्राड किया है। फर्जी मार्कशिट लगाकर चुनाव लड़ा और उनकी सरकार के मंत्री और अधिकारियों ने जब जांच की तो इसका खुलासा हुआ। डाक्यूमेंट्री प्रूफ है,इसे कैसे झुठला सकते हैं।