अजय वर्मा को उर्दू में ‘अब्बा’ लिखने की ‘तमीज’ नहीं और बन गये उर्दू अखबार ‘कौमी मुकाम’ के पत्रकार,ले ली राज्य मुख्यालय की मान्यता

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अजय वर्मा को ‘उर्दू’ आती नहीं बन गया ‘कौमी मुकाम’ का पत्रकार, फर्जी तरीके से ले लिया राज्य मुख्यालय की मान्यता

संजय पुरबिया

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी में लखनऊ एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार राजनीतिक खबरों को लेकर नहीं बल्कि सूचना विभाग द्वारा सपा सरकार में ‘अपराध’ करने वालों और ‘बीज विक्रेताओं’ को रेवड़ी की तरह ‘राज्य मुख्यालय’ की ‘मान्यता’ देने को लेकर है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि सूचना विभाग के अधिकारी किसक दबाव में इतने अंधे हो गये थे कि उन्हें इस बात का भी खौफ नहीं रहा कि वे ‘खांटी पत्रकारों’ का नहीं बल्कि ‘अपराधी’ और ‘बीज विक्रेताओं ‘को राज्य मुख्यालय की मान्यता दे रहे हैं। सीधी बात करें तेा ऐसा कर अधिकारियों ने जायज पत्रकारों के हक पर डाका डालने का कृत्य किया है। हास्यापद तो यह कि दैनिक अखबार ‘कौमी मुकाम’ से अजय वर्मा को राज्य मुख्यालय की मान्यता दे दी। क्या सूचना विभाग के जाबांज अधिकारियों ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि जिस अजय वर्मा को ‘उर्दू’ अखबार से राज्य मुख्यालय की मान्यता दे रहे हैं उसे ‘उर्दू’ का ‘ज्ञान’ है या नहीं ? क्या ये जानने की कोशिश की गयी कि जिसे मान्यता दे रहे हैं,उसने प्रतिष्ठित अखबारों में 5 वर्ष तक काम किया है या नहीं ? क्या अधिकारियों ने ये जानने की जहमत नहीं उठाये कि किन अखबारों में उसने काम किया है ? अजय वर्मा द्वारा लगाये गये ‘अनुभव प्रमाण पत्र’ एवं अखबारों के बारे में किसी ने ‘मंथन’ किया या आंख बंदकर दे दिया मान्यता ? क्या अजय वर्मा द्वारा लगाये गये अखबारों के कार्यालय से संपर्क साधा गया ? कुल मिलाकर सवालों के घेरे मे पूरासूचना विभाग है। बहरहाल, पत्रकारों की मानहानि करने वाले बीज विक्रेता अजय वर्मा के खिलाफ अब राजधानी के ‘खांटी पत्रकार’ लामबंद हो रहे हैं।

 

बिना किसी पत्रकारिता के अनुभव के राज्य मुख्यालय की प्रेस मान्यता हासिल करने वाले ‘सरकार के निशाने’ पर हैं। मानहानि की शिकायत के साथ लखनऊ के पत्रकार फर्जी पत्रकारों के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। नई नियमावली के अनुसार व्यापारी प्रेस मान्न्यता का पात्र नहीं है। जिस अखबार से जिस पत्रकार की मान्यता है,पत्रकार को उस भाषा का ज्ञान जरूरी है। उनकी मान्यता उर्दू अखबार से है लेकिन वो बिल्कुल भी ‘उर्दू’ का ‘ज्ञान’ नहीं रखते। पत्रकार अपना अनुभव उस अखबार से ही साबित कर सकता है,जो अखबार प्रतिष्ठित हो। लोग उस अखबार को जानते-पहचानते हों। अखबार के सेंटर पर वो अखबार उपलब्ध हो। वो अपने कथित अनुभव में एक भी ऐसा अखबार नहीं बता सकते,जिस अखबार का कोई अस्तित्व हो या उस अखबार को कभी भी देखा गया हो। अजय वर्मा मान्यता के किसी भी मानक पर ‘खरा’ नहीं उतरते हैं। वो व्यापारी है,बीज विक्रेता है। कैसरबाग चौराहे पर लस्सी के दुकान के सामने ‘किसान एण्ड कंपनी’ नाम से इसकी बीज की दुकान है। ये वही अजय वर्मा है जिसने वर्ष 2018-19 में किसानों को खराब बीज बेचा था जिस पर किसानों ने ‘नोटिस’ भेजा था।

लखनऊ के प्रतिष्ठित पत्रकारों के बारे में अजय वर्मा ऊल-जलूल, तथ्यहीन, आधारहीन अफ वाहें फैलाने के लिए सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। पत्रकारों के कई वाट्सएप ग्रुप्स पर उन्होंने जिन पत्रकारों की मानहानि की है, उस बात को लेकर पत्रकार बिरादरी आक्रोशित है। अजय वर्मा ने अभी हाल ही में एक ‘महिला का अपमान’ करने वाला कंटेंट सोशल मीडिया पर वायरल किया था। इस हरकतों के खिलाफ भी पत्रकार उन पर ‘मानहानि का केस’ करने की तैयारी कर रहे हैं। साथ ही सूचना विभाग से इस बात की शिकायत दर्ज करने के साथ-साथ अजय वर्मा की ‘राज्य मुख्यालय की मान्यता रद्द’ करने और उनके खिलाफ ‘कठोर कार्रवाई’ करने के लिये लखनऊ के पत्रकार लामबंद हो रहे हैं।

सवाल यह है कि जब अजय वर्मा व्यवसायी है तो इसे किस नियमावली के तहत सूचना विभाग ने राज्य मुख्यालय की मान्यता दे दी ? यानि, सूचना विभाग ने सपा सरकार में अपराधी और बीज बेचने वाले व्यवसायियों को राज्य मुख्यालय की माान्यता देकर एक नहीं सैंकड़ों खांटी पत्रकारों का हक मारने का काम किया है। लेकिन अब ‘योगी सरकार’ है…। अब ना तो ‘अपराधी’ बचेंगे और ना ही सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाकर ‘फर्जी लोगों को राज्य मुख्यालय की मान्यता देने वाले अधिकारी और फर्जी पत्रकार’…। देखना है कि फर्जी सूचना विभाग के अधिकारी उर्दू अखबार कौमी मुकाम के मान्यता प्राप्त पत्रकार अजय वर्मा से उर्दू में अब्बा लिखवाते हैं या नहीं ? ये भी देखना है कि फर्जी पत्रकार अजय वर्मा सहित राज्य मुख्यालय की मान्यता लेने वाले ‘सैंकड़ों पत्रकारों की मान्यता रदद कर’ ‘खांटी पत्रकारों ‘को उनका ‘हक’ दिलाने का काम सूचना विभाग के अधिकारी करते हैं या… ?

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