प्रतापगढ़ के ‘माटी के लाल’ जय प्रकाश शुक्ल को मिला ‘यूपी रत्न अवार्ड’

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100 से अधिक गरीबों को शिक्षा दिलाने वाले पीसीएस ‘जय प्रकाश शुक्ल’ को मिला ‘यूपी रत्न अवार्ड’

जय प्रकाश शुक्ल जीएसटी विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर हैं कार्यरत

 संजय पुरबिया
 लखनऊ। प्रतापगढ़ की माटी में किसान माता शंकर शुक्ल के घर में पैदा होना जहां एक बेटे के लिये गर्व की बात है लेकिन उससे भी गौरवान्वित करने की बात यह है कि ‘अभाव’ में भी अपने ‘लक्ष्य‘ को हासिल कर वो नौजवान पीसीएस बन जाता है। किस बाप को अपने ‘अफसर बेटा’ पर गर्व नहीं होगा…इस नौजवान ने 100 से अधिक विद्यार्थियों कोशैक्षिक‘ व ‘आर्थिक’ सहायता दिलाकर उन्हें भी ‘लक्ष्य भेदना‘ सिखाया। नि:स्वार्थ भाव से इसी तरह अनगिनत नेक काम को देख कर ‘यूपी डेवलपमेंट फाउंडेशन’ ने आज पीसीएस, सहायक आयुक्त (जीएसटी) जय प्रकाश शुक्ल को लखनऊ में आयोजित भव्य कार्यक्रम में उप-मुख्यमंत्री बृजेश पाठक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष,भाजपा व सांसद- देवरिया रमापति राम त्रिपाठी ने ‘यूपी रत्न अवार्ड’ देकर सम्मानित किया।

 

प्रतापगढ़ की पट्टी तहसील के छोटे से गांव में किसान के घर में जन्म लेकर आज हजारों घरों में शिक्षा की रोशनी फैलाने वाले जय प्रकाश शुक्ल दशकों की तपस्या के बाद ‘पीसीएस’ की सरकारी नौकरी को पाने में सफल हुये थे। ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करते हुये प्रयागराज विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई के बाद अपनी पीसीएस परीक्षा की तैयारी शुरू किया। वहीं, सिविल सेवा में अनेक बार असफ लता का सामना करते-करते अपने अनुभव से अनेक लोगों की राह के अंधेरे को दूर करने के लिये एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाना शुरू किया। वर्षों तक तमाम विद्यार्थियों को पढ़ाते रहें…,पढ़ते रहें और आगे बढ़ते रहें। खुशी होती है की सहायक आयुक्तजी- एसटी के पद पर कार्य करते हुये उनके द्वारा अपने प्रारंभिक जीवन की चुनौतियों से मिली हुई सीख और संस्कार के प्रभाव में, वे अंधेरे में पल-बढ़ रहे बच्चों के घर में शिक्षा का दिया जलाना नहीं भूलते…। 100 से अधिक विद्यार्थियों को शैक्षिक और आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने वाले जय प्रकाश शुक्ला, इसे अपना मिशन बना चुके हैं।

 

मुझे यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं लगता कि पति-पत्नी युगल राज्य की सेवा में काम करते हुये इस सेवा यात्रा की गाड़ी के दो पहिये बन चुके हैं। जूरी बोर्ड की जानकारी में आया कि मितव्ययिता और नितांत सरलता से जीवन जीने वाला शुक्ल परिवार अपनी सादगी से बचाये हुये पैसे से, जिसे त्याग भी कह सकते हैं से समाज की सेवा को गति दे रहे हैं। अद्भुत सरलता और सादगी के साथ प्रचार से कोसों दूर रहते हुये यह मिशन गतिशील है।

जूरी बोर्ड श्री शुक्ला को श्रेष्ठ ‘यूपी रत्न अवार्ड’ देकर इस निष्कर्ष पर पहुंचा है इससे अवार्ड की गरिमा बढ़ेगी और समाज में वंचित पीडि़तों की आवाज बनने के लिये लोगों को प्रेरणा मिलेगी। तहसील के छोटे से गांव में किसान के घर में जन्म लेकर, आज हजारों घरों में शिक्षा की रोशनी फैलाने वाले जय प्रकाश शुक्ल, दशकों की तपस्या के बाद पीसीएस की सरकारी नौकरी को पाने में सफल हुये थे।

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