सचिवालय: चिराग तले अंधेरा- मुख्यमंत्री के ट्रांसफर पॉलिसी की धज्जियां उड़ा रहे हैं प्रमुख सचिव!

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अनुभाग अधिकारी- किशलय सिंह, अनु सचिव- जयशंकर,अनु सचिव – गीता राठौर भी अपने-अपने पदों पर गत चार से पांच वर्ष से तैनात हैं

 जांच करायी जाये तो अधिसंख्य  अनुभाग अधिकारी,संयुक्त सचिव,अनु सचिव ‘करोड़पति’ निकलेंगे

 संजय पुरबिया

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तबादला नीति का शासन में बैठे बड़े अधिकारी ही ‘मजाक‘ बना रहे हैं। अधिकारी नहीं चाहते कि उनके चहेतों की ‘कुर्सी‘ पर कोई और आकर बैठे। यही वजह है कि ‘मुख्यमंत्री की नीति‘ पर अधिकारियों के ‘खास’ भारी पड़ रहे हैं। बात प्रदेश के कोने में पडऩे वाले जनपद की नहीं बल्कि सचिवालय प्रशासन की कर रहे हैं क्योंकि यहीं से सभी विभागों के समीक्षा अधिकारी,अनुभाग अधिकारी,अनु-सचिव,उप-सचिव,संयुक्त सचिव के पदों के तबादले विभिन्न विभागों में होते हैं।चिवालय प्रशासन में तैनात संयुक्त सचिव- अजय पाण्डेय,जय प्रकाश पाण्डेय, अनुभाग अधिकारी- किशलय सिंह, अनु सचिव- जयशंकर,अनु सचिव – गीता राठौर भी अपने-अपने पदों पर गत चार से पांच वर्ष से तैनात हैं जो कि सचिवालय प्रशासन नीति के विपरित है। सवाल यह है कि जब सचिवालय प्रशासन में जहां मुख्यमंत्री से लेकर पूरी सरकार बैठती है,वहीं पर ‘तबादला नीति का दम घोंटा’ जा रहा है तो प्रदेश भर में सभी विभागों पर कैसे ‘नकेल’ नकेल कसा जायेगा ? क्या लंबे समय से एक ही जगह पर जमे समीक्षा अधिकारी,संयुक्त सचिव,सचिव व अनु सचिव भ्रस्टाचार को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं ?रकार का ही कहना है कि नियमावली के तहत सभी वर्ग के अधिकारियों व कर्मचारियों को तबादला किया जाये ताकि भ्रस्टाचार पूरी तरह से खत्म हो और जीरो टॉलरेंस पर पूरी तरह से काम हो…। बहरहाल,सचिवालय में बैैठे अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं आखिर क्या सोचकर ये लोग अपने चहेतों को कुर्सी खाली करने के लिये नहीं कह रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में ‘चिराग तले अंधेरा’ कहावत चरितार्थ हो रहा है। तबादला नीति आने के बाद सभी विभागों के विभागाध्यक्ष मंथन कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री के तबादला नीति में कहीं चूक ना हो जाये। नियम के तहत समयावधि पूरी करने वालों का ही तबादला हो ताकि उन पर कोई सवाल ना उठा सके। वहीं,सचिवालय प्रशासन में नियमों को ताख पर रखकर अनुभाग अधिकारी,संयुक्त सचिव,उप सचिव व अनु सचिव लंबे समय से एक ही कुर्सी पर बैठ कर ‘मलाई’ खा रहे हैं। भ्रस्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की बातें करने वाली सरकार की नीतियों पर सचिवालय प्रशासन के तथाकथित अधिकारी ही ‘धज्जियां’ उड़ा रहे हैं। 10 फरवरी 2015 द्वारा उत्तर प्रदेश सचिवालय सेवा के अधिकारियों व कर्मचारियों के स्थानांतरण के संबंध में निति का निर्धारण किया गया है। अपर मुख्य सचिव एन.एस.रवि द्वारा जारी पत्र में लिखा है कि प्रस्तर संख्या 1 में संशोधन करते हुये उत्तर प्रदेश सचिवालय सेवा के किसी अधिकारी व कर्मचारी को उनके संपूर्ण सेवाकाल में किसी एक विभाग में तैनाती की अधिकतम अवधि में संशोधन किया गया है। समूह क में अनु सचिव,उप सचिव का स्थानांतरण नीति पूर्व में 5 वर्ष था,जिसे नवीन निर्धारित समयावधि में 3 वर्ष किया जाता है। संयुक्त सचिव,विशेष सचिव का पूर्व में 3 वर्ष था जो इस समय भी 3 वर्ष ही रखा गया है।  इसी तरह,समूह ख में समीक्षा अधिकारी एवं अनुभाग अधिकारी व समकक्ष का पूर्व में 7 वर्ष समयावधि था जिसे घटाकर 5 वर्ष कर दिया गया है। समूह ग में कम्प्यूटर सहायक एवं सहायक समीक्षा अधिकारी व समकक्ष का पूर्व में 10 वर्ष का समयावधि था जिसे घटाकर 7 वर्ष कर दिया गया है।

किश्लय सिंह तो एक बानगी हैं। सचिवालय प्रशासन के विभिन्न अनुभागों में आठ से दस सालों से अनगिनत अनुभाग अधिकारी,संयुक्त सचिव,अनु सचिव तैनात हैं। एक सीट पर लंबे समय से तैनात होने की वजह से यदि जांच करायी जाये तो अधिसंख्य ‘करोड़पति’ निकलेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि उनका तबादला नहीं होगा लेकिन महत्वपूर्ण सीट पर होने की वजह से वे दूसरों का तबादला कर लाखों का वारा-न्यारा जरूर करते रहेंगे। हास्यापद तो यह है कि पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री के तबादला नीति पर सही ढंग से पालन करने के लिये अधिकारी माथा-पच्ची कर रहे हैं कि कहीं कोई उन पर ऊंगली ना उठा दे और सचिवालय प्रशासन में…। ना छापने की शर्त पर वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि सचिवालय प्रशासन के प्रमुख सचिव के. रविन्द्रनायक ही जब मुख्यमंत्री के तबादला नीति की अनदेखी कर रहे हैं तो कैसे मान लिया जाये कि अन्य विभागों में तबादला नीति का पालन किया जायेगा। बड़ा सवाल है कि मुख्यमंत्री की नीतियों को अवहेलना कर अपने चहेतेां को बचाने वाले अधिकारियों पर गाज गिरेगी या फिर…।

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