‘चुटकी बजाकर’ फरियादियों को ‘फैसला’ सुनाती हैं विधायक जय देवी…

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मलिहाबाद विधान सभा का एक-एक सदस्य मेरे परिवार का हिस्सा है: जय देवी

गर्दीश के दौर में तो सूखे सावन,भरे बादल वाला मौसम था…

बैठकर तो आज भी बातें नहीं हो पाती। यदि होती भी है तो थोड़ी देर बाद वो तकरार में बदल जाती है…

‘सादगी की मूरत’ हैं और उनके भाव में कहीं से भी ‘सत्ता का दंभ’ नहीं दिखता

आम के पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठ जाती हैं और फिर शुरु होती है विधायक जय देवी की अदालत…

कौशल किशोर को खाने में तरोई की सब्जी,चावल या मखाना लेते हैं

शादी से पहले सांसद जी बेर के पेड़ के नीचे  ‘सफेद बेलबाटम’ पहने, ‘अमिताभ बच्चन’ की तरह बड़े-बड़े बाल रखे हमका देख रहे थे…

कौशल जी गरीब जरुर थे लेकिन शुरु से मैंने देखा ईमानदारी और खुद्दारी उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी…

    दिव्या श्री.
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने साबित कर दिया है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘सकारात्मक सोच’ की वजह से ही ‘महिला सशक्तिकरण’ को बल मिला है। यही वजह है कि राजनीति में आने वाली महिलायें जमीनी स्तर से जुड़कर अपने संस्कार,सभ्यता और शालीनता से खूब सुर्खियां बटोर रही हैंउत्तर प्रदेश सरकार की बात करें तो कई महिलाओं ने मंत्री,सांसद और विधायक बनकर ऐसा काम किया है या कर रही हैं जिससे योगी सरकार का ‘मान’ बढ़ा। इन्हीं में एक हैं, मलिहाबाद की विधायक जय देवी,जो ‘सादगी की मूरत’ हैं और उनके भाव में कहीं से भी ‘सत्ता का दंभ’ नहीं दिखता। वे पूरी सादगी के साथ अपने घर का चूल्हा-चौका का काम निपटाने के बाद सुबह घर के बाहर आम के पेड़ के नीचे कुर्सी पर बैठ जाती हैं और फिर शुरु होती है विधायक जय देवी की अदालत…। गांव,गली और क्षेत्र से पीडि़त महिलायें,पुरुष,सभी फरियादी अपनी समस्याओं के अंबार लगा देते हैं लेकिन क्या मजाल विधायक जय देवी परेशान हों…। गांव वालों के साथ ‘गंवई’ भाषा में आत्मीयता का बोध देते हुये समस्याओं को सुनती हैं। पुलिस-प्रशासन या गांव में जमीनों का विवाद हो,तुरंत दो मीनट में फैसला सुनाती हैं। जब उनके दरवाजे पर पीडि़त आते हैं तो चेहरों पर तनाव होता है लेकिन जाते समय सभी चेहरे पर मुस्कान लेकर लौटते हैं, क्योंकि वे अपने विधायक नहीं बल्कि अपने ‘दीदी’ अऊर ‘बहनी’ के पास आकर फरियाद करते हैं। सबसे अच्छी बात जय देवी में ये दिखी कि वे भीड़ में बैठी होती हैं तो अनजान व्यक्ति ये नहीं जान पाता कि उनके सामने ‘मलिहाबाद की विधायक जय देवी’ बैठी हैं। बिल्कुल सादगी से भरपूर सलवार-सूट में फरियादियों को अपने अगल-बगल बिठाकर उनकी समस्याओं को सुनती है। जहां तक अंदाज की बात है तो जय देवी गांव वालों के साथ ‘ठेठ गंवई’ अंदाज में बात करती हैं, तभी तो वे पीडि़तों के दिलों में घर कर जाती हैं। जय देवी तो विधायक हैं ही इनके पति हैं केन्द्रीय राज्य मंत्री व सांसद कौशल किशोरकौशल किशोर भी अपनी ‘जीवटता’ और ‘जनमानस के बीच के नेता’ के रुप में विख्यात हैं।

सीधी बात करें तो कौशल किशोर और जय देवी दोनों ही अवाम की सेवा के लिये ही बने हैंमलिहाबाद की विधायक जयदेवी से खास बातचीत में ‘द संडे व्यूज़’ ने हर उन पहलुओं पर बात की जिसे सूबे की जनता जानना और सुनना चाहती है। उन्होंने पूरी बेबाकी के साथ अपने और अपने पति के गर्दिश के दिनों से लेकर कैसे उनकी शादी हुयी,बच्चों ने कितनी गरीबी देखी…पर खुलकर बातचीत की। दोनों पति-पत्नी यानि केन्द्रीय राज्य मंत्री,सांसद कौशल किशोर और मलिहाबाद की विधायक जयदेवी ने गर्दीश के दिनों में भी लोगों को न्याय दिलाने के लिये ईमानदारी से खूब लड़ाई लड़ी और आज उस मुकाम पर हैं जहां आने के लिये दुनिया तरसती है। पेश है जय देवी से खास बातचीत के अंश…।

सवाल: सुबह से ही आपके घर पर फरियादियों की भीड़ लग जाती है। आप कैसे मैनेज करती हैं ?

जवाब: सुबह छह बजे तक अपना घरेलू काम निपटाने के बाद हम आम के पेड़ के नीचे कुर्सी खिंचकर बईठ जाते हैं ताकि बारी-बारी से सबकी समस्या सुनकर दो मिनट में फैसला सुना सकें। ये भीड़ जो आप देख रहे हो हमरे परिवार के लोग हैं। हम इनकी समस्या नहीं निपटा पायेंगे तो बेकार है विधायक होने का…। आखिर हमका विधायक यही लोग तो बनाये हैं,फिर हमरे रहते यदि क्षेत्र के लोग परेशान हो तो क्या फायदा…।

सवाल: किस तरह के मामले आते हैं ?

जवाब: गांव में जमीन के पट्टों का विवाद,घरेलू विवाद,महिलाओं का विवाद और सबसे अधिक लड़के-लड़कियों की शादी का मामला आता है। मैं दोनों परिवार को पास बुलाती हूं और प्यार से समझा देती हूं कि जब लड़का-लड़की शादी के लिये तैयार हैं तो आपलोग आशीर्वाद दे देओ ताकि इनलोगों का घर खुशहाल बन सके। मेरे समझाने पर बहुत घर बस गये हैं। इसी तरह,पुलिस-थाने के प्रकरण आते हैं कि शिकायत करने के बाद भी दारोगा काम नहीं कर रहा है,तो फोन कर मामले को सुलटा देते हैं।

सवाल: आपके पास जितने फरियादी आते हैं क्या उनकी समस्याओं का निस्तारण तुरंत हो जाता है या फिर लंबा समय लगता है ?

जवाब. देखिये… जिस अधिकारी से संबंधित मामले होते हैं,उसे फोन कर दो मिनट में मामलों का निस्तारण कराते हैं। हमारी कोशिश रहती है कि मेरे दरवाजे जो आये,खुश होकर जाये। आप जब कभी आयेंगे आपको यहां पर समस्या लेकर आने वालों की भीड़ नजर आयेगी लेकिन जाते समय सभी खुश होकर जाते हैं। जब कोई परेशान हो तो उम्मीद के साथ हमारे पास आता हैऔर उसकी समस्याओं को दूर करा देते हैं तो लोग दुआ ही देकर जाते हैं।

सवाल: आपके पति कौशल कि शोर सांसद हैं,आप विधायक, पत्नी और मां हैं। तीनों रोल कैसे अदा करती हैं,कैसे सामंजस्य बनाकर रखती हैं?
जवाब : जिस तरह मैं पत्नी और मां का काम पूरे मन से करती हूं,ठीक उसी तरह अपने दरवाजे आने वालों की समस्याओं को भी अपना समझ कर दूर करने का भरसक प्रयास करती हूं। कौशल जी की पहचान देश-प्रदेश में अपनी ईमानदारी और काम की वजह से होती है। सुबह उठने के बाद नाश्ते के टेबल पर हमलोगों की बातें होती है। नाश्ता में उन्हें एक आम,कीवि,सेब लेते हैं। इस दौरान राजनीति की कम और परिवार की बातें होती है। उस दौरान सांसद जी को हल्का-फुल्का नाश्ता देने के बाद हमदोनों फरियादियों की समस्याओं को निपटाने में लग जाते हैं।

सवाल : कौशल जी पहले की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ दिखते हैं। दिन-रात काम का दबाव रहता है उसके बाद भी आप इन्हें फीट कैसे रखती हैं ?

जवाब : देखिये,कौशल जी अब केन्द्रीय मंत्री हैं तो स्वाभाविक है उनकी जिम्मेदारियां बढ़ गयी है। काम के बोझ के बीच भी वे समय के बहुत पाबंद हैं। यदि लखनऊ में हैं तो कुछ भी हो जाये एक बजे घर आ जाते हैं या फिर उनका टिफिन समय पर उन तक पहुंच जाता है। खाने में तरोई की सब्जी,चावल या मखाना लेते हैं। कहीं बैठक में होते हैं तो बिना तेल के मखाना ज्यादा भेज देते हैं क्योंकि हमको मालूम है कि वे खाते कम बांटते ज्यादा हैं…।

सवाल: आप कौशल जी का ‘सेहत’ बनाने की बात कर रही हैं लेकिन ‘नाश्ता-खाने’ में इतनी ‘कंजूसी’ क्यों करती हैं?

जवाब: अरे भईया,देख रहे हो आपके सांसद जी पहले से कितने फीट हैं। हैं कि नहीं बताओ…। पेट बिल्कुल अंदर हो गया है…। एकदम नौजवान की तरह दिखने लगे हैं और ये सब समय पर कम खाना खाने की वजह से हुआ है। आप जितना स्वस्थ रहेंगे उतना अधिक काम करेंगे। वैसे भी कौशल जी पर जिम्मेदारियां बहुत है।

सवाल: आप दोनों के पास फरियादी आते हैं। क्या कभी आपको सांसद जी के पास आने वाले केस को भी निपटाना पड़ा ?

जवाब: अरे,यहां तो हर दिन सांसद जी के कई प्रकरण को निपटाती हूं। लोग क्षेत्रीय समस्या लेकर जाते हैं तो वे सीधे मेरी तरफ ट्रांसफर कर देते हैं। चूंकि हम दोनों सुबह होते ही जनता की फरियाद सुनने बैठ जाते हैं तो सभी मामले आसानी से निपट जाते हैं। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि रात के समय भी लोग अपनी बात लेकर चले आते हैं तो हमलोग ये नहीं देखते की दिन है या रात…

सवाल: आपकी शादी 1984 में हुयी। कुछ ऐसी रोचक बातें जो आप बताना चाहती हो ?

जवाब: हमरी शादी में एक नहीं कई मजेदार बातें हुयी। आपलोगों को शायद नहीं मालूम की कौशल किशोर जी मुझे देखने के लिये हमारे गांव बहादुर आये थे,जो गुडम्बा थाना के पास है। मेरे पिता जी बैजू प्रधान जिन्होंने कभी चुनाव नहीं हारा। जब से प्रधान बनें आखिरी सांस तक वही प्रधान रहें। पिता जी की ‘हनक’ थी और कौशल किशोर जी मुझे देखने आये। हमका मालूम नाही रहा कि कोई लड़का देखे आवा है। हम सिर पर आंचल डालकर घर के सामने बने कुंआ से पानी भर रहे थे। कुछ दूर पर लगे बेर के पेड़ के नीचे सांसद जी ‘सफेद बेलबाटम’ पहने, ‘अमिताभ बच्चन’ की तरह बड़े-बड़े बाल रखे मुझ घूर रहे थे। उनके साथ एक दोस्त भी था। हमका का मालूम हम रस्सी से खींचकर बाल्टी पानी निकाले और बल्टी में भर कर अंदर चले गये। कौशल जी को हम पसंद आ गये थे लेकिन उनके परममित्र ने कान में फूंक दिया कि लड़की सुंदर तो है लेकिन ‘आंखें भूरी’ है…देख लेओ सही नाही होत है…। फिर क्या था,सांसद जी को परम मित्र की बातें सही लागी और एक साल तक मामला ठंड़ा रहा। एक साल बाद कौशल जी को समझ में आया कि लड़की ‘संस्कारी’ और ‘सुंदर’ है,शादी तो जया से ही करेंगे। हमरे घर आये सबसे मिले लेकिन हमलोग तैयार नहीं थे। भईया का भरोसा…पहले कहें ‘आंख भूरी’ है और शादी बाद कुछ हो जाये तो…। उस समय मेरी शांति दीदी पुलिस इंस्पेक्टर थी। उन्होंने बात की और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद हमलोगों की 23 अप्रैल 1984 को शादी हुयी।

सवाल : शादी के दिन कौशल किशोर जी बारात लेकर गांव पहुंचे,उस समय की कोई रोचक बातें,जो बताने लायक हो ?

जवाब: सवाल सुन विधायक जया देवी हंस पड़ी और बताया कि कौशल जी टेम्पू में बैठकर और बाराती ट्रैक्टर पर लदकर
हिचकोले खाते हुये हमरे गांव पहुंचे। इंटरव्यू के दौरान सांसद कौशल किशोर जी भी पहुंच गये…। शादी के दौरान की बातों के बीच उन्होंने बताया कि जब हमलोगों की शादी हो रही थी तो दूल्हे के हांथ में पीले रंग का धागा बांधा जाता है,जिसे मैंने निकाल कर जेब में रख लिया था और पंडित जी के बगल में खड़ा हो गया। पंडित जी आवाज लगा रहे थे कि अरे,शादी में देर हो रही है दूल्हा कहां है? इस पर जब मैंने कहा कि पंडित जी दूल्हा मैं हूं… तो वे चौंक कर मेरी तरफ देखने लगे। सांसद जी की बातें सुन वहां मौजूद लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया।

सवाल : यानि,शादी ठीक तरीके से हो गयी और आप जया कौशल किशोर बनकर अपने ससुराल आ गयीं ?

जवाब: अरे नहीं,अभी आगे की सुनो…। शादी का रस्म तो पूरा हो रहा था तभी लड़के वालों ने कहा कि कल सुबह कौशल जी को परीक्षा देने जाना है इसलिये सुबह का रस्म आने के बाद होगा। सुबह भात खिलाने और विदाई की रस्म रोक दी गयी। कौशल जी देर शाम वापस लौट कर आये तब जाकर भात खिलाने का रस्म पूरा हुआ। सच्चाई ये थी कि जिस दिन हमारी विदाई थी कौशल जी चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में अपना नामांकन भरने गये थे। लौटने के बाद रात में मेरी विदाई हुयी और हम आ गये अपने ससुराल।

सवाल:स वक्त कौशल किशोर जी की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। आपलोगों ने कैसे स्थिति को संभाला,क्या बताना चाहेंगी ?

जवाब : जिस जगह पर आप बैठे हैं,यहां कुछ नहीं था। सिर्फ एक कच्ची कोठरी और एक छप्पर था। कौशल जी गरीब जरुर थे लेकिन शुरु से मैंने देखा ईमानदारी और खुद्दारी उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी। ईश्वर की कृपा रही कि उस वक्त भी हमारे दरवाजे पर कोई परेशान होकर आता था तो कौशल जी उसकी मदद के लिये तैयार हो जाते थे। भूखा आता तो घर में जो रूखा-सूखा होता,उसे भी खिलाते थे। वो संघर्ष का दिन था,जिसमें हमलोग खूब तपे…। आर्थिक स्थिति इतनी तंगहाल थी कि कई बार मेरे बच्चे दूध देख नहीं पाते थे। पानी में भिगोंकर पारले बिस्किट खिलाती थी। मेरे तीन बच्चे हैं जो गरीबी की वजह से ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाये लेकिन संस्कारवान बनाया।

सवाल : जो गर्दीश का दौर देखता है वही आगे चलकर इतिहास रचता है। आप दोनों पति-पत्नी राजनीति से लेकर सामाजिक स्तर पर एक बड़ा नाम बन गये हैं। अब कैसा लगता है? सांसद जी के साथ जब बैठती हैं तो किन मुद्दो पर खूब बातें होती है ?

जवाब : गर्दीश के दौर में तो सूखे सावन,भरे बादल वाला मौसम था। बैठकर तो आज भी बातें नहीं हो पाती। यदि होती भी है तो थोड़ी देर बाद वो तकरार में बदल जाती है। शादी में हमदोनों ने सात फेरे लिये हैं उनमें से एक फेरा राजनीति का है…।

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