लखनऊ का एक आई.सी.एस. अफसर भयंकर रुप से शराब पीता था। बाबा वहां के पुलिस अधीक्षक के साथ कमिश्नर के यहां गये। जब वे लोग वहां पहुंचे तो कमिश्नर ने शराब की एक बोतल छिपाकर अपने पास रखी थी। बाबा कार में ही चिल्ला उठे,क्या बात है ? कमिश्नर क्रोध से कांपने लगा। वहा चिखने लगा,किसे ले आये हो तुम यहां,उसे कोई तमीज नहीं। उसे यहां से बाहर निकालो। कमिश्नर की अभद्रता से पुलिस अधीक्षक के शरीर में आग लग गयी। उसने अपनी पिस्तौल कमिश्नर पर तान दी परन्तु महाराज जी गरजे…। क्या कर रहा है तू ?
वह बड़ा संत है। तुम उसका सिर्फ बाहरी स्वरुप देख रहा है। तेरे साथ हम फिर कभी नहीं आयेंगे। वह कमिश्नर बाद में बाबा का अनन्य भक्त बन गया। वह बाबा का दर्शन करने आता लेकिन बाहर जूतों के पास ही बैठ जाता क्योंकि वह अपने लिये वही स्थान उचित समझता। बाद में वह इलाहाबाद में प्रशासनिक अधिकारी संस्थान का अध्यक्ष बन गया। कुछ दिनों बाद वो रक्तस्राव से पीडि़त हो गया और अंत में उसे बहुत पीड़ा सहनी पड़ी किन्तु उसने राम नाम की जाप जारी रखा और प्रसन्न रहता। अधीक्षक की आंखों में आंसू भर आये जब वह उनसे अंतिम समय मिला और उसने पूछा क्या मैं तुम्हारी पत्नी और पुत्र को बुला दूं। कमिश्नर बोला, नहीं यह आसक्ति का समय नहीं है। इस समय तो मुझे केवल राम और महाराज जी का ही स्मरण करना है। अलविदा,हम फिर मिलेंगे और वह सदा के लिये विदा हो गया…। इसी तरह,एक दिन बाबा नाई की दुकान पर दाढ़ी बनवा रहे थे। नाई ने दाढ़ी बनाते समय कहा कि बहुत दिनों से मेरा लड़का घर से भागा है,अभी तक उसका कोई पता नहीं चला। नाई बहुत दुखी था। बाबा की दाढ़ी आधी बन चुकी थी और आधे हिस्से में साबुन लगा था। उन्होंने नाई से कहा मुझे लघुशंका लगी है इसलिये दाढ़ी बनाना रोक दे। बाबा उसी हालत में दुकान से बाहर गये और थोड़ी देर बाद वापस आ गये उसके बाद शेष दाढ़ी बनवायी और चले गये। दूसरे दिन नाई के पास उनका लड़का वापस आ गया और उसने एक विचित्र किस्सा सुनाया। कहा कि वह यहां से लगभग 100 मील दूर एक होटल में काम कर रहा था। कल एक बूढ़ा उसके पास आया जिसकी आधी दाढ़ी बनी थी। उसने मुझे कुछ रूपये दिये और कहा कि आज ही गाड़ी से अपने पिता के पास लौट जाओ। वह बहुत दुखी है। इतना सुनते ही लड़के ने उसी रात गाड़ी पकड़ी और दूसरे दिन घर आ गया। तभी तो कहते हैं… नीम करौरी बाबा की जय हो…।