लखनऊ के ट्रांसपोर्टनगर आरटीओ कार्यालय से कैसे टूटेगा दलालों का वर्चस्व !

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मंत्री जी,लखनऊ के ट्रांसपोर्टनगर आरटीओ कार्यालय से कैसे टूटेगा दलालों का वर्चस्व!

अफसरों की मिलीभगत से चल रहा है दलाली का बड़ा नेटवर्क

आखिर पुलिस के छापे पर क्यों नहीं हो पाता

     अरुण शर्मा

लखनऊसीधी बात कहूं तो ट्रांसपोर्टनगर आरटीओ कार्यालय में यदि आपकी पहुंच नहीं है तो काम नहीं होगा…। अब डीएल,वाहनों का फिटनेस से लेकर अन्य कागजातों को कंप्लीट कराना है तो आप झक मारकर दलालों के चक्कर में फंसेंगे। दलालों को ढूंढऩे की जरुरत नहीं पड़ेगी,क्योंकि वे अफसरों के चैम्बर के बाहर ही खड़े रहते हैं। चेहरा भांपकर वे खुद पूछते हैं क्या काम है,होगा तो उसका कितना रेट है…। भुक्तभोगियों ने बताया कि ना चाहते हुये भी दलालों को मुंहमांगी रकम देनी पड़ती है। नहीं देंगे तो काम घंटा नहीं होगा…।

सच्चाई भी है क्योंकि दलालों को यहां बैठे चंद अधिकारी अपनी शर्तों पर रखते हैं और पर डे का ‘टार्गेट फिक्स’ करते हैं। जो दलाल उन्हें टार्गेट पूरा करके देता है,साहेब खुश होकर उसे पीडि़तों को ‘लूटने’ की पूरी आजादी दे देते हैं। इसीलिये आये दिन यहां विवाद उत्पन्न होता है और कभी-कभार पुलिस को भी इन अधिकारियों को रौले में लेने के लिये छापेमारी की औपचारिकता पूरी करनी पड़ती है। पिछले बुधवार को सरोजनीनगर थाने की पुलिस ने औचक छापेमारी की और वहां हड़कंप मच गया। अफसरों के चैम्बर के बाहर जगह खाली हो गया,वहां सिर्फ फिटनेस कराने वाले लोग ही खड़े दिखे। सवाल यह है कि परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहें। लखनऊ का चप्पा-चप्पा उनका समझा हुआ है फिर लखनऊ के आरटीओ कार्यालय से दलालों का वर्चस्व क्यों नहीं टूट रहा है।

आरटीओ कार्यालय में अधिकारियों और दलालों के गठजोड़ से आजिज कुछ लोगों ने थाने पर शिकायत की। इस पर सरोजनीनगर पुलिस टीम ट्रांसपोर्टनगर आरटीओ कार्यालय के फिटनेस सेंटर पर छापेमारी की तो दलाल भाग खड़े हुये। वहां सन्नाटा पसर गया। बता दें कि यहां पर गाडिय़ों का फिटनेस कराने वालों की लंबी लाईन लगी रहती है। अब यहां के तथाकथित अधिकारियों और दलालों का खेल समझिये।आये दिन यहां का सर्वर ठप्प करा देते हैं तो कई बार अधिकारी लापता रहते हैं जिसकी वजह से झक मारकर वाहन चालक इन दलालों के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं।

बताया जाता है कि एआरटीओ स्तर के अधिकारियों का प्रतिदिन अवैध कमाई का ‘टार्गेट फिक्स’ होता है। वाहन चालकों की भीड़ देखकर ‘रेट हाई’ हो जाता है। यानि,खुला फर्रूखाबादी खेल हो रहा है और सभी को मालूम है लेकिन कार्रवाई करने की जुर्रत कोई नहीं करता क्योंकि हमाम में सब….हैं। कार्यालय पर पीडि़त वाहन का काम कराने आये लोगों से बात किया तो उनका जवाब कुछ इस तरह से रहा…। परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के बनने के बाद हमलोगों को खुशी हुयी कि चलो कम से कम लखनऊ में तो आरटीओ कार्यालय से दलालों को खदेड़ा जायेगा लेकिन हो इसके उलट रहा है। जब यहां के अधिकारी ही दलालों को रखकर हर दिन ऊपरी कमाई का लक्ष्य दे रहे हैं तो हमलोग क्या कर सकते हैं। खैर,छापे का असर दो से तीन दिनों तक दिखा उसके बाद फिर से दलाल अपने पुराने काम में लग गये हैं।

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