पूर्वांचल में चार दशक पुराने गैंगवार का अंत

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आठ जेलों में रहा 18 साल छह महीने
हार्ट अटैक से माफिया मुख्तार अंसारी की मौत
बड़ा बेटा जेल में, बहू और पत्नी फरार
वाराणसी । माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के साथ ही पूर्वांचल में चार दशक पुरानी गैंगवार का अंत हो गया। पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की अदावत के किस्से बनारस की गलियों से लेकर गाजीपुर और मऊ-बलिया के चट्टी चौराहों तक आज भी बड़े चाव से सुने जाते हैं। हालांकि बृहस्पतिवार की रात मुख्तार अंसारी खुद भी पूर्वांचल की गैंगवार का एक किस्सा बन कर रह गया।

काशी से सटे गाजीपुर जनपद को लहुरी काशी भी कहा जाता है। अस्सी के दशक में मुड़ियार गांव के रामपत प्रधान सिंह और उनके भतीजों और साधू व मकनू के बीच पांच बीघा जमीन को लेकर विवाद हुआ था। विवाद कुछ इस कदर तूल पकड़ा कि साधू और मकनू ने लाठियों से पीट कर रामपत सिंह और फिर कुछ समय बाद उनके तीन बेटों की भी हत्या कर दी।

साधु और मकनू ने सच्चिदानंद राय की हत्या में मुख्तार की मदद की तो वह उन्हें अपना गुरु मानने लगा। इसके बाद साधू और मकनू के कहने पर मुख्तार ने रामू मल्लाह से मदद लेकर सैदपुर क्षेत्र के मेदिनीपुर के रणजीत सिंह की हत्या की। धीरे-धीरे साधू-मकनू और उनके गुर्गे मुख्तार का नाम पूर्वांचल भर में कुख्यात हो गया था। वर्ष 1984 में वाराणसी के धौरहरा गांव में बृजेश सिंह के पिता रवींद्रनाथ सिंह की हत्या बंशी और पांचू सहित अन्य लोगों ने की। बंशी और पांचू का जुड़ाव साधु और मकनू के गिरोह से था। इसके बाद हरिहर सिंह, चंदौली गांव के सिकरारा गांव के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित परिवार के सात लोग और साधु-मकनू सहित कई अन्य लोगों की गैंगवार में हत्या होती रही।

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