सूचना विभाग के अफसरानों की निगाहों से अब नहीं बच पायेंगे ‘फर्जी’ तरीके से ‘मान्यता’ लेने वाले ‘फर्जी पत्रकार’…

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सूचना विभाग ने राज्य मुख्यालय से मान्यता लेने वाले पत्रकारों से मांगा ‘प्रतिष्ठित अखबारों’ में काम करने का ‘अनुभव’, फर्जी मान्यता लेने वालों में मचा हड़कम्प

अर्दू लिखने का सहूर नहीं और राज्य मुख्यालय की मान्यता लेने वाले अजय वर्मा की कब रदद् होगी मान्यता?

अपराधियों और व्यापारियों को राज्य मुख्यालय की मान्यता देकर जायज पत्रकारों का हक छिनने वाले अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई ?

संजय पुरबिया

लखनऊ। उत्तर प्रदेश का सूचना विभाग अब आक्रामक मूड में है। भाजपा सरकार में अब सूचना विभाग के अफसरान नहीं चाहते कि पिछली सरकारों में येन-केन प्रकारेण से ‘झमझम टाईम्स’ अखबारों के दस्तावेज लगाकर फर्जी तरीके से  ‘राज्य मुख्यालय’ एवं ‘स्वतंत्र पत्रकार’ की मान्यता लेने वाले अधिसंख्य फर्जी लोगों को इस बार मान्यता मिले। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि जांच में पुष्टि हो गयी है कि दर्जनों ऐसे लोगों को राज्य मुख्यालय की मान्यता दे दी गयी है जो या तो ‘व्यवसाय’ करते हैं या फिर उन पर ‘आपराधिक मुकदमे’ दर्ज हैं…। यही वजह है कि पूरी जिंदगी ‘पत्रकारिता’ में ‘खपा’ देने वाले ‘जायय पत्रकार’ आज के दौर में ‘फाकामारी’ कर रहे हैं और कई तो ‘आर्थिक तंगी’ की वजह से या ‘गंभीर बीमारी’  से हॉस्पिटल के बेड़ पर ‘दम तोड़’ दिये। ऐसे’कलमकारों’ के परिजनों को आज पूछने वाला कोई नहीं…। यदि ऐसे कलमकारों को बिना पैरवी किये ‘राज्य मुख्यालय’ या ‘स्वतंत्र पत्रकार’ की मान्यमा मिल गयी होती तो सरकार से मिलने वाली तमाम सुविधाएं उन्हें मिल सकती थी…। शायद उनकी जान भी बच सकती थी… लेकिन ऐसा नहीं हो सका क्योंकि उनका ‘हक’ ‘अपराधी’ और ‘तमाम तरह का व्यवसाय’ करने वाले या फिर यूं कहें कि जिन्हें पत्रकारिता की ए,बी,सी,डी नहीं आती,ऐसे ‘दलालों’ ने मार रखा है। सूचना विभाग के नियमावली में तो है कि ‘प्रतिष्ठित अखबारों’ में काम करने का अनुभव लगाने वालों को ‘राज्य मुख्यालय’ की मान्यता दी जायेगी लेकिन हकीकत इससे परे है। अधिसंख्य ऐसे लोगों को ‘राज्य मुख्यालय’ की मान्यता ‘परोस’ दी गयी जो ‘झमझम टाईम्स’ का अनुभव प्रमाण पत्र लगा रखे हैं। वो अखबार जो किसी ‘सेंटर’ पर नहीं दिखा,वो अखबार जिसका किसी ने नाम तक नहीं सुना,वो अखबार जो प्रकाशित ही नहीं होता…। आप ही बताईये क्या ऐसे फर्जी लोगों को मान्यता मिलना चाहिये ?

 

 ये योगी राज है…अब पत्रकारिता में घुसे अपराधी सहित व्यवसायियों द्वारा जायज पत्रकारों का हक मारने वाले लोगों की खैर नहीं…। सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का साफ कहना है कि पिछली सरकारों में क्या हुआ,उससे कोई मतलब नहीं,इस सरकार में मान्यता उसे ही मिलेगा जो सही मायने में पत्रकारिता का अनुभव रखता हो। नई नीति के तहत सभी वरिष्ठ पत्रकारों को अवगत करा दिया गया है कि वे जिन प्रतिष्ठित मीडिया हाऊस में काम कर रहे हैं,उसका पूरा ब्यौरा दें। प्रतिमाह कितनी खबरें उनके नाम से प्रकाशित की गयी है। इस फरमान के बाद फर्जी दस्तावेज लगाकर या फिर यूं कहें कि चाटुकारिता करके राज्य मुख्यालय की मान्यता पाने वाले फर्जी पत्रकारों में हड़कम्प मच गया है। सभी अपने-अपने आका से जुगत लगा रहे हैं लेकिन पता चला कि आका खुद अपनी बचाने में लगे हैं कि कहीं उनकी मान्यता ना चली जाये…।

बता दें कि ‘द संडे व्यूज़’ वेब न्यूज पोर्टल पर मैंने शीर्षक ‘अजय वर्मा को ‘उर्दू’ आती नहीं बन गया ‘कौमी मुकाम’ का पत्रकार, फर्जी तरीके से ले लिया राज्य मुख्यालय की मान्यता’ 9 मई 2023 को खबर प्रकाशित की थी। खबर प्रकाशित होने के बाद  राज्य मुख्यालय का फर्जी तरीके से मान्यता लेने वाले अजय वर्मा के होश फाख्ता हो गयेसवाल यह है कि ये दैनिक अखबार ‘कौमी मुकाम’ के स्वामी अजय मिश्रा ने ऐसे इंसान को राज्य मुख्यालय की मान्यता किस आधार पर दे दी ? क्या मिश्रा जी ने जहमत उठाने की कोशिश की कि अजय वर्मा को उर्दू का ज्ञान या भी या नहीं ? यदि नहीं तो स्वामी ने सूचना विभाग को क्यों नहीं लिखा कि अजय वर्मा की मान्यता रद्द करे ? कहावत है कि कि चोरी करने वाले से अधिक दोषी उसे बचाने वाले की होती है…। अजय वर्मा यदि 20 वर्ष से पत्रकारिता कर रहे हैं तो सूचना विभाग को दिखाने का कष्टï करें कि वो कौन सा प्रतिष्ठित अखबार है ?

खैर,सूचना विभाग पूरी तरह से आर-पार के मूड में है और देखना है कि राज्य मुख्यालय एवं स्वतंत्र पत्रकारों की नई लिस्ट जारी होती है,उसमें से अपराधी,व्यवसाय करने वाले या झमझम टाईम्स जैसे अखबारों के दस्तावेज लगाकर फर्जी मान्यता लेने वाले फर्जी लोगों की मान्यता रदद् होती है या नहीं ?

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