पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण का पिृतपक्ष शुरू, पूर्णिमा की हुई श्राद्ध

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लखनऊ। पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण के निमित्त पितृपक्ष शुरू हो गया। आज 15 दिनों तक पूर्वजों का श्राद्ध करके लोग देव, ऋषि और पितृ ऋण से होने की कामना करेंगे। मान्यता है कि इस पक्ष में परिजनों के पास कई रूपों में मंडराते पितर अपने वंशजों से संतुष्ट होकर उन्हें आशीर्वाद देंगे। उन्हें अनिष्ट घटनाओं से दूर रखकर सुख-समृद्धि प्रदान करेंगे। पितृपक्ष के तहत पहले दिन जिन लोगों के परिजनों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई थी उनकी श्राद्ध की गई।संगम में पिंडदान, तर्पण के लिए देश-विदेश से लोग आने लगे हैं। तीर्थ पुरोहितों के अनुसार प्रतिपदा से अधिक लोग पिंडदान करेंगे। संगम समेत गंगा-यमुना के घाटों पर दूर-दराज से आये लोगों ने तीर्थ पुरोहितों के सानिध्य में पितरों की तृप्ति के निमित्त तर्पण किया। रविवार को प्रतिपदा की श्राद्ध की जाएगी।

श्राद्ध के नियम

उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार पितृपक्ष में श्राद्ध के कई नियम हैं। पितृपक्ष में किसी का निरादर न करें। कुत्ते, बिल्ली को मारना नहीं चाहिए। श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सात्विक भोजन करना चाहिए। बासी भोजन नहीं करना चाहिए। जो लोग पिंडदान के लिए तीर्थस्नान नहीं जा सकते वे घर के आंगन में ही तर्पण कर सकते हैं। तिलांजलि में केवल काले तिल का प्रयोग करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार श्राद्धकर्ता को प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद तर्पण करना चाहिए। देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर गंगाजल छिड़कना चाहिए। हाथ में तिल कुश लेकर विशिष्ट मंत्रों का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। पितरों के निमित्त गाय का दूध, दही, घी अर्पित करना चाहिए। गाय, कुत्ता, कौआ, चींटी के लिए भोजन से ग्रास निकालना चाहिए। ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजना कराना चाहिए। उसके बाद वस्त्र और दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए।

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