ओमप्रकाश राजभर के जन्मदिन पर विशेष-‘टेम्पू’ चलाने से लेकर राजनीति के ‘किंग मेकर’ बनने का सफरनामा

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 संजय पुरबिया

लखनऊ। वाराणसी के फतेहपुर खोदा सिंधौरा गांव का एक नौजवान बड़ा सपना लेकर गर्दीश के दौर में भी शिक्षा हासिल करता रहा। 1983 में बलदेव डिग्री कॉलेज से स्नातक की डिग्री लेने के बाद राजनीति शास्त्र से परास्नातक की डिग्री भी हासिल की। हालात ये थे कि छात्र जीवन में अपना खर्च निकालने के लिये उस नौजवान को टेम्पो तक चलाना पड़ा। इतना ही नहीं,अपनी गाढ़ी कमाई से उसने एक जीप खरीदा,जिस पर सवारियां ढोने का काम किया। आर्थिक तंगी का दौर था लेकिन उसने किसी काम को करने में संकोच नहीं किया क्योंकि उसमें खुद्दारी कूट-कूट कर भरी थी। उसके जेहन में जिंदगी में एक बड़ा मुकाम हासिल कर अपने लोगों को हक दिलाने का जुनून था। नौजवान में एक खास बात थी कि वो डंके की चोट पर सबसे सामने अपनी बात रखने का दम रखता था और उसके इसी अंदाज ने उसे राजनीति का एंग्रीमैन बना दिया। अपनी बेबाकी की वजह से आज वो राजनीति के पटल पर चमक रहे हैं और सभी राजनैतिक दलों की नींद उड़ा कर रख दिये हैं। एक आम शख्स से शख्यित बने उस नौजवान का नाम ओमप्रकाश राजभर है,जो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष हैं। ओमप्रकाश राजभर धूमधाम से अपना जन्मदिन मना रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें खुद बधाई दी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओमप्रकाश राजभर का नाम इसलिये भी सत्ता पक्ष या यूं कहें विपक्ष सम्मान से लेता है क्योंकि उन्हें मालूम है कि इनके पास एक बड़ा वोट बैंक है जो किसी भी राजनीतिक दल का समीकरण बनाने और बिगाडऩे के लिये काफी है। साथ ही ओमप्रकाश राजभर के एंग्रीमैन स्टाईल से भी सभी राजनेता वाकिफ हैं, उनकी जुबां से निकले एक शब्द भी सत्ता के गलियारे में भूचाल ला देता है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि हमेशा सुर्खियों में रहने वाले ओमप्रकाश राजभर की राजनीतिक जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। वे ‘सोने की चम्मच’ लेकर पैदा नहीं हुये बल्कि ‘गर्दीश‘ के उन दिनों से रुबरु हुये,जिनके बारे में सोच कर भी हौसले पस्त हो जाते हैं।

हमेशा अपने बेबाक बयानों से सुर्खियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर की राजनीतिक जीवन बहुत ही संघर्ष से भरा हुआ है। राजभर मूल रूप से वाराणसी जिले के फ तेहपुर खोदा सिंधौरा के रहने वाले हैं। पेशे से किसान राजभर ने 1983 में बलदेव डिग्री कॉलेज, बड़ागांव, वाराणसी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। बाद में उन्होंने राजनीति शास्त्र से परास्नातक की डिग्री भी हासिल की। छात्र जीवन के दौरान खर्च निकालने के लिये यह टेंपो चलाते थे। बाद में उन्होंने एक जीप खरीदा था, जिस पर यह सवारी ढोते थे। यह गांव में सब्जी की खेती भी किया करते थे। इनके परिवार में पत्नी राजमति राजभर के अलावा 2 पुत्र हैं, जिनका नाम अरुण राजभर और अरविंद राजभर है। दोनों बेटे राजनीति में सक्रिय हैं। अरुण राजभर वर्तमान में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं तो अरविंद राजभर पूर्व मंत्री रह चुके हैं। ओम प्रकाश राजभर का जन्म 15 अक्टूबर 1962 को हुआ था। इनके पिता का नाम सन्नू राजभर है, जो कोयला खदान में काम करते थे? राजभर ने 1981 में बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ राजनीति शुरू की लेकिन 2001 में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती से विवाद के बाद उन्होंने बपसा से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, राजभर भदोही का नाम बदल कर संतकबीर नगर रखने से नाराज थे। इसके बाद उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी नाम से अपनी नई पार्टी बना ली।

2004 से चुनाव लड़ रही भासपा ने यूपी और बिहार के चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किये लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाये। हालांकि वोट प्रतिशत अच्छा रहा। ओमप्रकाश राजभर ज्यादातर मौकों पर जीतने से ज्यादा खेल बिगाडऩे वाले बने रहें। लेकिन 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन करके उन्होंने सत्ता के साथ रहने का सुख पा लिया। वैसे राजभर ने पहले मुख्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लडऩे का ऐलान किया था, मगर बाद में पीछे हट गये थे। राजभर ने 35 सालों के संघर्ष के बूते अति पिछड़ों के नेता के रूप खुद को स्थापित किया। वे पूर्वांचल की दो दर्जन सीटों पर प्रभाव रखते हैं।

कहा जाता है कि बसपा संस्थापक कांशीराम से प्रभावित होकर ओम प्रकाश राजभर ने 1981 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। ओमप्रकाश राजभर के मुताबिक पूरे देश में राजभर की आबादी 4 प्रतिशत है और उत्तर प्रदेश में इनकी आबादी 12 प्रतिशत है। एक आंकलन के अनुसार, पूर्वांचल के दो दर्जन लोकसभा सीटों पर राजभर वोट 50 हजार से ढाई लाख तक हैं। वहीं, घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही राजभर बहुल माने जाते हैं। इन सीटों पर राजभर समुदाय के लोग हार और जीत का निर्णय करते हैं।

ओमप्रकाश राजभर के राजनीतिक करियर का टर्निंग प्वाइंट तब आया जब पिछड़ी जातियों पर पकड़ को देखते हुये 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन हुआ। समझौते के तहत भारतीय जनता पार्टी ने राजभर को 8 सीटें दी थी, इनमें से 4 सीटों पर जीत दर्ज करके ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने न केवल अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत की, बल्कि राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया। ओम प्रकाश राजभर को योगी आदित्यनाथ की सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण और दिव्यांग जन कल्याण मंत्री बनाया।

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